सरकार द्वारा बिजली उपभोक्ताओं की समस्याओं के निराकरण के लिए सजगता प्रदर्शित किए जाने के बावजूद इस दिशा में उल्लेखनीय प्रगति न होना विभागीय कार्यशैली को कठघरे में खड़ा कर रहा है। हाल ही में ऊर्जा निगम कर्मचारी संगठन के एक सम्मेलन में मुख्यमंत्री ने बिजली उपभोक्ताओं की समस्याओं के प्रति कर्मचारियों से सजग रहने की अपेक्षा की। मुख्यमंत्री ने निर्देश दिए कि प्रदेशभर में समस्याओं के निस्तारण को बिजली अदालत लगाई जाएं और मौके पर ही समस्याओं का निस्तारण हो। ग्रामीण क्षेत्र के उपभोक्ताओं को प्राथमिकता दी जाए। अब सवाल उठता है कि क्या ऊर्जा निगम अफसरों पर मुख्यमंत्री के इस रुख का कोई असर दिखेगा। सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि उपभोक्ता हित में सूबे के मुखिया पहले भी बहुत कुछ कह चुके हैं, लेकिन सब ठंडे बस्ते में है। एक साल से ज्यादा समय गुजर चुका है, जब मुख्यमंत्री हरीश रावत ने दिल्ली की तर्ज पर ऊर्जा निगम में कंज्यूमर प्रोटेक्शन सेल बनाने के निर्देश दिए थे। लंबे समय तक तो इस पर कोई कसरत ही नहीं हुई। कई बार इसका खाका तैयार किया गया और कई बार इसमें बदलाव किए गए। हालांकि, कुछ महीने पहले प्रोटेक्शन सेल का प्रस्ताव निदेशक मंडल की बैठक में पास हो चुका है, मगर इसके गठन को कोई कसरत होती नहीं दिख रही। दरअसल, उत्तराखंड में बिलों-मीटरों में गड़बड़ी, कनेक्शन लेने के लिए फजीहत झेलना जैसी कई प्रमुख समस्याओं से उपभोक्ताओं को जूझना पड़ता है। उत्तराखंड विद्युत नियामक आयोग ने गढ़वाल और कुमाऊं मंडल में देहरादून और हल्द्वानी में एक-एक उपभोक्ता शिकायत निवारण मंच बनाया है, लेकिन इसका फायदा दूरस्थ क्षेत्र के उपभोक्ता नहीं उठा पाते और ऊर्जा निगम स्तर पर शिकायत का समाधान होना नामुमकिन जैसा ही है। हालांकि, आयोग जिलेवार मंच स्थापित करने पर विचार कर रहा है। प्रोटेक्शन सेल के गठन के पीछे सरकार की दो मंशा थी। एक तो उपभोक्ताओं की समस्या का समाधान तो दूसरा ऊर्जा निगम को हर्जाने की कार्रवाई से बचाना, क्योंकि मंच पांच लाख से ज्यादा का हर्जाना भर चुका है। अगर प्रोटेक्शन सेल में उपभोक्ता की समस्या सुलझ जाएगी तो निगम पर भी हर्जाना नहीं लगेगा। अब मुख्यमंत्री ने विधानसभा चुनाव बाद सत्ता में लौटने की स्थिति में बिजली अधिकार कानून बनाने की बात कही है, लेकिन जरूरत ऊर्जा निगम की व्यवस्थाओं में सुधार करने की है। उपभोक्ताओं की परेशानी का अंदाजा सिर्फ इस बात लगाया जा सकता है कि पिछले आठ सालों में आयोग ऊर्जा निगम पर छह करोड़ से ज्यादा का जुर्माना समय पर कनेक्शन नहीं देने पर लगा चुका है लेकिन अधिकारियों पर इसका कोई असर नहीं। अब देखना होगा कि मुख्यमंत्री के आदेश-निर्देश एक बार फिर जलेबी की तरह घूमेंगे या उपभोक्ताओं को कुछ राहत भी मिलेगी।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]