मालदा के गाजल विधान सभा क्षेत्र से माकपा विधायक दीपिका विश्वास और बांकुड़ा के विष्णुपुर के कांग्रेस विधायक तुषार कांति भट्टाचार्य के तृणमूल में शामिल हो जाने पर उनकी नैतिकता पर सवाल खड़ा हुआ है। दोनों विधायक 21 जुलाई की शहीद दिवस रैली में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की उपस्थिति में तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए। माकपा और कांग्रेस ने मिल कर चुनाव लड़ा था। चुनाव बाद माकपा और कांग्रेस गठबंधन को पहली बार करारा झटका लगा है। शहीद दिवस के मंच पर विपक्ष के दो विधायकों के अतिरिक्त खडग़पुर नगरपालिका के 5, कालियागंज नगरपालिका के 7 और पुरुलिया नगरपालिका के 2 यानी कांग्रेस के 14 पार्षद भी तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए। इसके अतिरिक्त ममता कांग्रेस के गढ़ मुर्शिदाबाद में भी सेंधमारी करने में सफल हो गईं। मुर्शिदाबाद जिला कांग्रेस के महासचिव व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अधीर चौधरी के रिश्तेदार अत्रि मजूमदार ने भी तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया।

दीपिका विश्वास और तुषार कांति भïट्टाचार्य दोनों विधायकों के पार्टी छोडऩे के लिए लगभग समान तर्क है। दीपिका का कहना है कि माकपा में रहकर वह अपने क्षेत्र का विकास नहीं कर सकती। ममता बनर्जी जिस तरह राज्य का विकास कर रही हैं उससे उनके साथ रह कर अच्छा काम किया जा सकता है। मुख्यमंत्री के काम से प्रभावित होकर उन्होंने तृणमूल में शामिल होने का निर्णय लिया है। तुषार कांति भïट्टाचार्य का भी कहना है कि विपक्षी दल में रहकर राज्य का विकास नहीं किया जा सकता है। अपने क्षेत्र का संपूर्ण विकास के लिए उन्होंने सत्तारूढ़ दल तृणमूल में शामिल हुए हैं। दोनों विधायकों का तर्क अपनी जगह सही है। राज्य के विकास में भागीदार होना अच्छी बात है। लेकिन यहां सवाल नैतिकता का है। जिस पार्टी में रहकर नेता अपने मनमुताबिक काम नहीं कर सकते और विकास कार्य में भागीदार नहीं हो सकते उन्हें बेशक पार्टी छोडऩे का अधिकार है। लेकिन इसके लिए भी नियम कानून मान कर चलना उचित है। खास कर वैसी स्थिति में जब वह निर्वाचित जनप्रतिनिधि हों और दूसरी पार्टी में शामिल होते हों तो उन्हें पहले अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए। आदर्श और सिद्धांत की राजनीति का तकाजा भी यही है।

दीपिका और तुषार कांति दोनों को पहले अपने विधायक पद से इस्तीफा देना चाहिए था। उसके बाद उन्हें दूसरी पार्टी में शामिल होना चाहिए। लेकिन दोनों इस्तीफा दिए बिना सत्तारूढ़ दल में शामिल हो गए। पिछली बार कांग्रेस के 10 से अधिक विधायक तृणमूल में शामिल हुए थे। इसलिए इस बार कांग्रेस ने सभी विधायकों से लिखित हलफनामा लिया था कि वे दूसरे दल में शामिल नहीं होंगे। इसके बावजूद तुषारकांति भïट्टाचार्य ने तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया। कांग्रेस और माकपा ने दोनों विधायकों के खिलाफ दल बदल कानून के तहत कार्रवाई के लिए कानूनी सलाह ले रहे हैं, जो उचित भी है।

[ स्थानीय संपादकीय : पश्चिम बंगाल ]