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पेपर में गलतियां इसलिए भी चिंतनीय है क्योंकि पेपर उस शिक्षण संस्थान में तैयार किए गए, जहां शिक्षक तैयार किए जाते हैं
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परीक्षा विद्यार्थियों के भविष्य का निर्णायक पक्ष होती हैं इसलिए इनके प्रति उनमें और उनके अभिभावकों में इस दौरान चिंता से मिश्रित सक्रियता होती है। लेकिन प्रदेश के सरकारी स्कूलों में ली जा रही एसए-1 (सिमुलेटिव असेस्मेंट) और एसए-टू परीक्षा प्रश्नपत्रों में गलतियों के कारण सवालों के घेरे में हैं। बेहतर शिक्षा के दावों की उस समय पोल खुल गई जब प्रश्नपत्र में ही गलतियों की भरमार देखी गई। यह हमारी लचर व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है कि प्रश्नपत्रों में ही व्याकरण की गलतियां जा रही हैं। हालांकि इस तरह का मामला सामने आने के बाद एक-दूसरे पर दोषारोपण का दौर भी शुरू हो गया है। इस सारे कृत्य के दोषी माने जाने वाला संबंधित पक्ष प्रिंटिंग प्रेस को ही दोषी बता रहा है। सोमवार को पहले दिन सातवीं कक्षा के सामाजिक विषय के प्रश्न नंबर तीन के खाली स्थान के भाग चार में शताब्दी के स्थान पर भाताब्दी लिखा था। इसी तरह प्रश्न नंबर पांच के भाग चार के प्रश्नपत्र में शैल चक्र या फिर जल चक्र की जगह भौल चक्र से आप क्या समझते हैं, पूछा गया था। शिक्षा विभाग की इन गलतियों के कारण बच्चों को काफी दिक्कत का सामना करना पड़ा। पहले पेपर में तो बच्चों को ऐसी गलतियों से दो-चार होना पड़ा, लेकिन दूसरे पेपर में भी गलतियों की भरमार रही। आठवीं के हिंदी के पेपर में प्रश्न नंबर एक के गद्यांश में सोसायटी को सोसासटी लिखा गया था। जबकि प्रश्न नंबर चार के भाग झ में खट्-खट् की जगह रवट्-रवट् लिखा गया था। इस प्रश्न के बारे में न तो शिक्षकों को पता चल रहा था और न ही बच्चों को। इससे साफ जाहिर हो रहा है शिक्षा विभाग ने प्रश्नपत्र को तैयार करते वक्त सही ढंग से नहीं पढ़ा है। यह परीक्षा शुरू से ही विवादों में रही है। पहले इस परीक्षा के लिए बार-बार डेटशीट बदली गई फिर इस तरह की गलतियों से शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठे। पेपर में गलतियां होना इसलिए भी चिंतनीय है चूंकि यह पेपर उस शिक्षण संस्थान में तैयार किए गए जहां से शिक्षक तैयार किए जाते हैं। इस तरह की गलतियों से सबक लेते हुए अगली परीक्षा में बेहतर प्रबंधन करना चाहिए। बेशक यह परीक्षा वार्षिक न हो, लेकिन इन परीक्षाओं के अंक भी अंतिम परीक्षा परिणाम में जोड़े जाते हैं, लिहाजा इन त्रुटियों के लिए बच्चों को अतिरिक्त अंक देने की व्यवस्था भी होनी चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय: हिमाचल प्रदेश ]