महालेखाकार ने पंचायतों और स्थानीय निकायों की कार्यशैली पर गंभीर सवाल उठाए हैं। नियमों की धज्जियां उड़ाकर बजट को ठिकाने लगाने पर काङ्क्षरदों का ज्यादा जोर रहा। यह चिंता का विषय है।
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उत्तराखंड में पंचायतों और स्थानीय निकायों में बजट का दुरुपयोग या बंदरबांट चिंता का विषय है। बजट सत्र में सदन में महालेखाकार की जो रिपोर्ट रखी गई है, वह एक प्रकार से आंखें खोलने वाली है। महालेखाकार ने अपनी रिपोर्ट में नियमों के विपरीत करोड़ों रुपये खर्च करने, कर एवं स्टांप ड्यूटी की दरें मनमाफिक तरीके से तय करने का जिक्र किया है। रिपोर्ट इस बात की भी चुगली करती दिख रही है कि इन मकहमों ने योजनाओं को बनाते वक्त जनसांख्यकीय संरचना का भी ख्याल नहीं रखा। बाकी कायदे-कानूनों की तो जैसे परवाह ही नहीं की। योजनाएं जनता की जरूरत के हिसाब से नहीं, बल्कि बजट ठिकाने लगाने के मकसद से तैयार की गईं। यह अलग बात है कि काङ्क्षरदे तमाम किंतु-परंतु गिनाकर अपने फैसलों को सही करार देने की कोशिश करते दिखाई पड़ रहे हैं, लेकिन आंकड़ों की गवाही को भला कैसे अनदेखा किया जा सकता है। दरअसल, महालेखाकर की रिपोर्ट न केवल गड़बडिय़ों को सामने लाई है, बल्कि पूरी व्यवस्था पर सवाल उठा रही है। यह स्थिति तब है जब सरकारें पारदर्शिता को अपनी शीर्ष प्राथमिकताओं में शुमार करने का दावा करती आई हैं। लेकिन, असलियत इसके उलट है। आलम यह कि ठीक से न तो नियमों का पालन हो रहा है और न ही पर्यवेक्षण। योजनाओं को मंजूरी देने के मामले को ही ले लीजिए, पंचायत राज एक्ट में स्पष्ट है कि ग्रामीण इलाकों में जहां कहीं के लिए भी कोई योजना तैयार की जाएगी, उसका प्रस्ताव संबंधित ग्राम सभा से तैयार होकर आएगा। इसी तरह निकाय एक्ट में नगरीय क्षेत्रों की योजनाओं के प्रस्तावों पर बोर्ड की मुहर लगाने की बाध्यता है, मगर इस व्यवस्था को काङ्क्षरदों ने अपने ढंग से तोडऩे-मरोडऩे में कोई कसर नहीं छोड़ी। सवाल यह कि आखिर ऐसा कब तक चलता रहेगा। अदने से राज्य में इस तरह की कार्यसंस्कृति अच्छी नहीं कही जा सकता है। उपकृत करने की परिपाटी को राज्य में कब तक ढोया जाता रहेगा। यह जानते हुए भी कि इससे जनता का नहीं, बल्कि व्यक्ति का हित जुड़ा हुआ है। सरकार को महालेखाकर की रिपोर्ट को रस्मअदायगी के रूप में न लेकर इसमें उठाए गए बिंदुओं पर गहनता से मंथन करना चाहिए। साथ ही इनसे पार पाने की पहल करनी चाहिए। उम्मीद है कि मौजूदा सरकार रिपोर्ट के आधार न केवल जवाबदेही तय करेगी, बल्कि भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति भी नहीं होने देने के लिए कदम उठाएगी।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]