झारखंड में पेयजल की समस्या गहराती जा रही है। भूगर्भ जल स्तर पाताल में जा रहा है वहीं सुदूर इलाकों के साथ-साथ राजधानी में भी शुद्ध पीने का पानी मयस्सर नहीं है। उच्च आय वर्ग संसाधनों के बल पर पेयजल की सुविधाएं ले रहा है लेकिन निचले स्तर पर इसकी कमी हाई कोर्ट ने भी महसूस की। इस बाबत हाई कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए जनहित याचिका के तहत सुनवाई आरंभ की है। बुधवार को राज्य की मुख्य सचिव को अदालत ने तलब किया। पेयजल व्यवस्था को लेकर सरकार की ओर से दायर शपथपत्र से न्यायाधीश असंतुष्ट नजर आए। उन्होंने स्पष्ट कहा कि व्यवस्था ठीक नहीं है और सरकार पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित करे। मौखिक टिप्पणी के दौरान सरकारी सिस्टम की भी खिंचाई की गई। पेयजल एïवं स्वच्छता विभाग के वरीय अधिकारी भी इस दौरान हाई कोर्ट को संतुष्ट नहीं कर पाए। ऐसी स्थिति पूरे सिस्टम पर सवाल खड़े करती है। राज्य में पेयजल आपूर्ति योजनाओं की लंबी फेहरिश्त है। कई योजनाएं एक दशक पहले से चल रही है। इनका एस्टीमेट दोगुना हो चुका है। कुछ योजनाएं अधर में हैं तो कुछ की गति इतनी सुस्त है कि जल्दी उसके पूरे होने के आसार नहीं दिखते। ऐसे में झारखंड आने वाले दिनों में भयंकर जल संकट का सामना करता दिख रहा है। तमाम हिदायत के बावजूद डीप बोङ्क्षरग बंद नहीं हो पा रही है। इसमें संबंधित नगर निगमों की संलिप्तता से इन्कार नहीं किया जा सकता। शुद्ध पेयजल के अभाव में सुदूर इलाकों में लोग दूषित जल का भी सेवन करते हैं जो जलजनित बीमारियों की वजह बनता है। ऐसी परिस्थिति में सिर्फ न्यायालय को आश्वस्त करने से बात नहीं बनेगी। राज्य में पाइप लाइन से सुदूर इलाकों में पानी की आपूर्ति की योजना बनी है। कुछ क्षेत्रों में इसपर काम भी हुआ है लेकिन इसका धरातल पर ज्यादा असर दिखता नहीं। योजनाओं का मकसद आम लोगों को राहत पहुंचाना है। अगर इसमें विभाग नाकाम है तो अधिकारियों की जिम्मेदारी तय होनी चाहिए। योजनाओं का असर नहीं दिखने की एक बड़ी वजह इसका अव्यवहारिक होना है। कई बार राजनीतिक प्रेशर में भी योजनाएं हाथ में ली जाती है लेकिन उसपर अमल नहीं हो पाता। ऐसे में उन राज्यों का मॉडल अंगीकार किया जा सकता है जहां पेयजल आपूर्ति की बेहतर योजनाएं धरातल पर सफल हैं। गुजरात सरकार ने इस दिशा में काफी काम किए हैं। गुजरात की भौगोलिक परिस्थिति विषम है। इसके बावजूद पेयजल देकर सुदूर इलाकों में राहत पहुंचाने का काम अगर सफलतापूर्वक संपन्न हुआ तो इसे तंत्र की दूरदर्शिता मानी जाएगी। झारखंड के अधिकारी भी उसी जज्बे के साथ काम करें तो तस्वीर बदलते देर नहीं लगेगी। तब न्यायालय को तल्ख टिप्पणी करने को मजबूर नहीं होना पड़ेगा।
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हाइलाइटर
गुजरात में जिस तरह तंत्र की दूरदर्शिता से विषम भौगोलिक परिस्थितियों में सुदूर इलाकों में पानी पहुंचाया गया। झारखंड में भी उसी जज्बे से अधिकारी काम करें तो तस्वीर बदलते देर नहीं होगी।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]