पुलिस को सूचना तंत्र को और अधिक विकसित करना होगा। नक्सल प्रभावित गांवों में पुलिस गश्ती को और चुस्त-दुरुस्त रखने के साथ लापरवाह पुलिस अधिकारियों पर भी सख्ती जरूरी है।
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रांची जिले के बुढ़मू प्रखंड व हजारीबाग के केरेडारी क्षेत्र के सीमांत बड़का मेड़ी गांव में शनिवार रात , जिस तरह बड़ी संख्या में बेखौफ नक्सलियों का जुटान हुआ और पुलिस को भनक तक नहीं लगी, यह पुलिस के सूचना तंत्र की पोल खोलने के लिए काफी है। इन नक्सलियों ने रात में यहीं भोजन किया और फिर वर्चस्व की लड़ाई में अपने ही छह साथियों को गोलियों से भून दिया। बड़ी बात यह रही इन नक्सलियों को पुलिस के प्रति यदि जरा भी खौफ रहता तो अगले दिन रविवार की सुबह एक बार फिर 50 की संख्या की संख्या में जुटकर पूरे इलाके की घेराबंदी करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। पुलिस को खुली चुनौती देते हुए ये नक्सली हथियार के साथ गांव पहुंचे और मौके पर मौजूद ग्रामीणों को भगाकर पांच शवों को वैन में तो एक शव को मोटरसाइकिल पर लादकर आराम से निकल लिए। आगे-आगे शव लदे वाहन तो पीछे-पीछे स्कॉट कर रही तीन मोटरसाइकिल, जिसमें हथियार लहराते नक्सली थे। हथियार देख ग्रामीण डरे सहमे रहे। इतना सब कुछ हो जाने के बाद सुबह आठ बजे पुलिस की एक टीम घटनास्थल पहुंची। हमेशा की तरह देर से पहुंची पुलिस कुछ कपड़े और खून व मांस के लोथड़े ही बरामद कर सकी। एक ओर जहां पुलिस दावा करती है कि नक्सली बैकफुट पर आ गए हैं वहीं नक्सली बेखौफ होकर पूरे गांव की घेराबंदी कर ङ्क्षहसक वारदात को अंजाम दे रहे हैं। इससे सुरक्षा पर सवाल तो उठ ही रहा है। बड़का मेड़ी गांव के ग्रामीण जो रात से लेकर सुबह तक हथियारबंद नक्सलियों के घेरे में रहे लेकिन पुलिस द्वारा समय रहते कोई कार्रवाई करना तो दूर, समय पर गांव तक नहीं पहुंच सकी उससे वे सुरक्षा की उम्मीद कैसे बांध सकते हैं। यही कारण है कि प्रभावित इलाकों में नक्सलियों के प्रति खौफ आज भी बरकरार है। इसके लिए पुलिस को सूचना तंत्र को और अधिक विकसित करना होगा। नक्सल प्रभावित गांवों में पुलिस गश्ती को बढ़ाने और चुस्त-दुरुस्त रखने की जरूरत है। इसके साथ ही ग्रामीणों की सुरक्षा के प्रति लापरवाह पुलिस अधिकारियों पर भी सख्ती जरूरी है। नक्सलियों की धमक जब तक गांवों में कम नहीं होगी तब तक इन गांवों में विकास की परिकल्पना धरातल पर नहीं उतरेगी। नक्सलियों के खिलाफ पुलिस को लगातार मिल रही सफलता के बावजूद पुलिस को सजग रहना होगा, अन्यथा नक्सली मौके का फायदा उठाने में पीछे नहीं रहेंगे।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]