सड़क, पानी और बिजली आदि विकास की बुनियादी ढांचागत सुविधाएं है। ग्रामीण बंगाल में आज भी ढांचागत सुविधाओं का घोर अभाव है। बंगाल के गांवों में आय के साधन सीमित है और यहां के लोगों की क्रय शक्ति भी कम है। इसकी कई वजहें हो सकती है लेकिन इसमें राजनीतिक ड्डकारण भी शामिल है। बंगाल दशकों से मुख्य धारा की राजनीति से कटा हुआ है। पहले तो वामपंथी लगभग चार दशकों तक राज्य को मुख्य धारा से काट कर रखे। चार दशकों तक माकपा ने केंद्र विरोध के नाम पर शासन किया। उसके बाद ममता बनर्जी जीत कर सत्ता में आई तो उम्मीद जगी कि अब बंगाल की तस्वीर बदलेगी, लेकिन वह भी केंद्र विरोध पर अडिग हैं। ममता का केंद्र विरोध अभी भी जारी है। उनका यह गंभीर आरोप है कि केंद्र पश्चिम बंगाल की उपेक्षा कर रहा है। उन्होंने अधिकांश परियोजनाओं के तहत राज्य को मिलनेवाले फंड में कटौती करने का आरोप केंद्र पर लगाया है, लेकिन आंकड़े ठीक इसके उलट तस्वीर पेश कर रहे हैं।
केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के सचिव ने राज्य के मुख्य सचिव को लिखे पत्र में कहा है कि वित्त वर्ष 2016-17 में राज्य में 4100 किलो मीटर नई ग्रामीण सड़क तैयार करने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन मात्र 1247 किलो मीटर सड़क ही तैयार हुई है जो बहुत निराशाजनक है। पूरे देश में जहां औसतन 69 प्रतिशत सड़कें तैयार हुई वहीं पश्चिम बंगाल में मात्र 30 प्रतिशत ही काम हुआ है। ग्रामीण सड़कें तैयार करने में निर्धारित लक्ष्य को पूरा करने के लिए 19 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे। इसके बावजूद काम नहीं हुआ। हालांकि इसमें राज्य की भागीदारी 904 करोड़ रुपये है। केंद्र ने इस योजना में काम की गति बढ़ाने का निर्देश दिया है। राज्य सरकार ग्रामीण सड़क निर्माण में मात्र 170 करोड़ रुपये ही खर्च कर पाई है। यह तो मात्र एक बानगी है। हालांकि, राज्य सरकार ने कहा कि केंद्र ने जो आंकड़ा प्रस्तुत किया है वह सही नहीं है। अधिकांश केंद्रीय परियोजनाओं में राज्य को भी वित्तीय भागीदारी निभानी पड़ती है। ग्रामीण सड़क योजना में केंद्र राज्य की भागीदारी 60-40 फीसद के अनुपात में है। अन्य परियोजनाओं में भागीदारी का अनुपात अलग-अलग है, लेकिन कर्ज के बोझ से जर्जर पश्चिम बंगाल विभिन्न केंद्रीय परियोजनाओं में अपनी वित्तीय भागीदारी निभाने में असमर्थ है। ऐसी स्थिति में विकास कार्य आगे नहीं बढ़ता है तो इसके लिए केंद्र को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।
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(हाईलाइटर::: अधिकांश केंद्रीय परियोजनाओं में राज्य को भी वित्तीय भागीदारी निभानी पड़ती है। केंद्रीय ग्रामीण सड़क योजना में केंद्र राज्य की भागीदारी 60-40 फीसद के अनुपात में है।) 

[ स्थानीय संपादकीय : पश्चिम बंगाल ]