यह सही है कि लोगों को राज्य के सरकारी अस्पतालों में बेहतर चिकित्सा मिलती है। वहां चिकित्सा में लापरवाही भी कम होती है। सरकारी अस्पतालों में सही चिकित्सा पर कोई संदेह नहीं है। छोटे अस्पताल में चिकित्सा संभव नहीं होने पर रोगी को जिला अस्पताल या मेडिकल कालेजों में रेफर किया जाता है। सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा की यही प्रक्रिया है। इसमें कोई दो राय नहीं कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सकारात्मक कदम उठाने से सरकारी अस्पतालों में चिकित्सा व्यवस्था में काफी सुधार हुआ है, लेकिन कलकत्ता मेडिकल कालेज जैसे प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थान के प्रसूति वार्ड से एक नवजात शिशु की चोरी की घटना ने सरकारी अस्पतालों की साख पर बïट्टा लगा दिया है। यह बात दूसरी है कि पुलिस ने घंटों तलाशी अभियान चलाकर शिशु चुरानेवाली महिला को गिरफ्तार कर लिया। पर, इससे पहले घटना को लेकर जिस तरह हंगामा और अस्पताल में तोडफ़ोड़ हुई उस पर भी सवाल खड़ा होता है।
हाल ही में मुख्यमंत्री ने निजी अस्पतालों पर नियंत्रण और उनकी चिकित्सा व्यवस्था सुधारने के लिए विधानसभा से बिल पारित कराया है। निजी अस्पताल के लिए कड़े कानून बनाए दिए गए, लेकिन सरकारी अस्पताल इसके दायरे में नहीं है। इससे तो यही लगता है कि सरकारी अस्पताल को लेकर मुख्यमंत्री आश्वस्त हैं। परंतु, कलकत्ता मेडिकल कालेज में एक नवजात की चोरी की घटना को लेकर जिस तरह हंगामा, तोडफ़ोड़ और सड़क अवरोध तक किया गया, उससे अस्पतालों में सुरक्षा व्यवस्था की पोल खुल गई है। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए मुख्यमंत्री ने तत्काल वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों के साथ उच्चस्तरीय बैठक की जिसके बाद उन्होंने सरकारी अस्पतालों की हालत सुधारने के लिए कुछ आवश्यक निर्देश दिए। अब सभी सरकारी अस्पतालों में सीसीटीवी कैमरा लगेंगे। अस्पतालों में सुरक्षा कर्मियों की संख्या बढ़ायी जाएगी और सभी कर्मियों के लिए परिचय पत्र अनिवार्य किया जाएगा। अस्पताल में आया रखने की चलन खत्म करने की भी जरूरत महसूस की गई है, लेकिन सवाल उठता है कि जब कोई बड़ी घटना घटती है तभी सरकार क्यों जागती है? महानगर के एक बड़े मेडिकल कालेज में एक महिला धड़ल्ले से घुस कर शिशु को चुरा सकती है तो राज्य के अन्य छोटे-बड़े सरकारी अस्पतालों में लचर सुरक्षा व्यवस्था का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।
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(हाईलाइटर::: कलकत्ता मेडिकल कालेज में एक नवजात शिशु की चोरी की घटना को लेकर जिस तरह हंगामा, तोडफ़ोड़ और सड़क अवरोध तक किया गया उससे अस्पतालों की सुरक्षा व्यवस्था की पोल खुल गई है।)

[ स्थानीय संपादकीय : पश्चिम बंगाल ]