राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने यह जो इच्छा प्रकट की कि देश भर में गोहत्या पर प्रतिबंध लगना चाहिए वह नई नहीं है। आरएसएस के साथ-साथ अन्य अनेक धार्मिक-सामाजिक और सांस्कृतिक संगठन इस तरह की मांग एक लंबे अर्से से करते चले आ रहे हैं। ऐसी मांग आजादी के बाद पहले भी की गई और बाद में भी। इससे भी सभी अवगत हैं कि इसके लिए समय-समय पर आंदोलन भी हुए। जो लोग यह समझ रहे हैं कि हिंदू समाज गोहत्या के लिए सहमत हो जाएगा वे एक तरह से जानबूझकर इस तथ्य की अनदेखी कर रहे हैं कि हिंदुओं के लिए गाय सदियों से आस्था का प्रतीक है और ऐसे प्रतीक कभी ओझल नहीं होते। आखिर इस देश में गाय के प्रति व्यापक हिंदू समाज की जो आस्था है उसका सम्मान क्यों नहीं हो सकता? जब अकबर समेत कई अन्य मुगल शासकों ने गोहत्या को निषेध बनाने की जरूरत समझी तो फिर आज कुछ लोग यह समझने से क्यों इन्कार कर रहे हैं कि हिंदू समाज में गाय की क्या महत्ता है? यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब कभी हिंदू संगठन अपनी यह इच्छा प्रकट करते हैं कि गाय के प्रति उनकी भावनाओं को सम्मान मिले और उन राज्यों में चोरी-छिपे गोहत्या की प्रवृत्ति पर रोक लगे जहां ऐसा करना निषेध है तो कुछ लोग तरह-तरह के कुतर्कों के साथ सामने आ जाते हैं। कई लोग तो ऐसे तर्कों के साथ हिंदू समाज को चिढ़ाने पर भी उतर आते हैं कि आखिर अन्य दुधारू पशुओं ने क्या बिगाड़ा है?
यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि पाबंदी वाले राज्यों में गोहत्या की एक वजह हिंदुओं को चिढ़ाना और उन्हें नीचा दिखाना रहता है। बहुत दिन नहीं हुए जब संसद में यह कहा गया था कि गोमांस सेवन पर रोक लगाना लोगों को प्रोटीन युक्त खाद्य सामग्री से वंचित करना है। स्पष्ट है कि ये वही लोग हैं जो गाय को केवल आर्थिक दृष्टि से देखते हैं और उसकी धार्मिक-सांस्कृतिक महत्ता की अनदेखी करते हैं। किसी भी वर्ग-समुदाय के लिए गोमांस सेवन आवश्यक नहीं है। नि:संदेह यह भी नहीं कहा जा सकता कि इसके बिना किसी का काम नहीं चल सकता। आज जब मुस्लिम समाज के भी अनेक धार्मिक-राजनीतिक नेता गोहत्या पर प्रतिबंध की मांग के साथ गोमांस से परहेज करने का आग्रह कर रहे हैं तब फिर यह आवश्यक हो जाता है कि सभी लोग ऐसा माहौल बनाने में योगदान दें जिससे गोहत्या पर प्रभावी ढंग से प्रतिबंध लग सके। मोहन भागवत ने गोहत्या पर देशव्यापी प्रतिबंध की अपेक्षा प्रकट करने के साथ यह जो कहा कि गोरक्षा का कार्य अहिंसा का पालन करते हुए किया जाना चाहिए उस पर भी सभी को और विशेष रूप से उन हिंदू संगठनों को अनिवार्य रूप से गौर करना चाहिए जो गोरक्षा को लेकर सक्रिय हैं। गोरक्षा के नाम पर किसी को भी कानून अपने हाथ में लेने की अनुमति नहीं मिल सकती। अलवर की दुर्भाग्पूर्ण घटना के बाद गोरक्षा को लेकर सक्रिय संगठनों को चेत जाना चाहिए। ऐसी घटनाएं गोरक्षा संगठनों के साथ-साथ अन्य अनेक हिंदू संगठनों की बदनामी का कारण बनती हैं। नि:संदेह गायों की देखभाल के तौर-तरीकों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है और इस पर भी विचार करने की कि बूढ़ी-बीमार गायों की देखभाल कैसे की जाए।

[ मुख्य संपादकीय ]