देश के सबसे प्रतिष्ठित अस्पताल अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में एक मरीज को इलाज का खर्च जमा कराने के बावजूद तीन साल से तारीख पर तारीख मिलना चिंता की बात है। यह एम्स की कार्यप्रणाली पर बड़ा सवाल है। इससे पता चलता है कि यहां की प्रशासनिक व्यवस्था ठीक नहीं है। गौर करने वाली बात यह है कि आखिर जब आपरेशन की तारीख तय करने के बाद भी यह पता नहीं है कि उस दिन आपरेशन हो पाएगा या नहीं तो फिर डाक्टर ने इसके लिए जरूरी प्लेट और स्क्रू की खरीदारी कराने में इतनी जल्दबाजी क्यों की? क्या उन्हें इस बात की समझ नहीं है कि इस तरह के सामान की कोई समयसीमा भी होती है? एक बार जब वह एक्सपायर हो जाए तो फिर वह किसी काम का नहीं होता। ऐसे में मरीज का पैसा बर्बाद हो जाता है। इसमें ध्यान देने वाली यह भी है कि जिस कंपनी से प्लेट व स्क्रू की खरीदारी की गई उसका कर्मचारी डाक्टर के पास पहले से ही बैठा था। यह कहीं न कहीं कंपनी के प्रतिनिधि और डाक्टरों के बीच सांठगांठ की ओर भी इंगित करता है। इसलिए एम्स प्रशासन को इस मामले की जांच करनी चाहिए और लापरवाही बरतने वाले डाक्टरों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी चाहिए ताकि कोई भी भविष्य में इस तरह की हरकत करने की गलती न करे।
यह कोई नई बात नहीं है कि दवा या आपरेशन में इस्तेमाल होने वाले सामान बनाने वाली कंपनी के प्रतिनिधि डाक्टरों के संपर्क में रहते हों। कई बार डाक्टर उनसे बातचीत कर जरूरतमंद लोगों को कम कीमत पर सामान भी उपलब्ध करा देते हैैं लेकिन ज्यादातर मामलों में यही देखा जाता है कि वे कमीशन के लालच में एक कंपनी विशेष की ही दवा लिखते हैैं। इस तरह की प्रवृति सही नहीं होती। डाक्टर को समाज में भगवान के बराबर का दर्जा दिया जाता है। ऐसे में उनकी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। इसलिए जरूरी है कि वे इस तरह के लालच से बचें। साथ ही एम्स प्रशासन यह सुनिश्चित करे कि जब डाक्टर किसी मरीज को आपरेशन की तारीख दे दें तो बिना कारण उसे न टाला जाए। इससे मरीज का न सिर्फ मर्ज बढ़ता बल्कि उसका अस्पताल प्रशासन के प्रति नजरिया भी बदलता है। अपनी साख बनाए रखने के लिए एम्स प्रशासन को इस चुनौती से पार पाने के लिए गहनता से प्रयास करने होंगे तभी स्थिति सुधरेगी।

[ स्थानीय संपादकीय : दिल्ली ]