पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने हरियाणा सरकार से यह जायज सवाल किया है कि पुलिस को भीड़ के भरोसे कैसे छोड़ा जा सकता है? इस वास्तविकता से कोई इन्कार नहीं कर सकता कि आंदोलनों और प्रदर्शनों के दौरान पुलिस के जवानों की स्थिति दयनीय होती है। कई बार तो उग्र भीड़ उनकी पिटाई तक कर देती है। ऐसी स्थिति में यह सवाल उठना लाजिमी ही है कि सरकार पुलिस को आधुनिक सुरक्षा उपकरण क्यों नहीं देती। अच्छे हेलमेट, अच्छे बचाव करने वाले पैड और अन्य उपकरणों के साथ क्लोज सर्किट टेलीविजन कैमरे भी पुलिस को दिए जाने चाहिए। इससे उपद्रवियों के मन में यह दहशत रहेगी कि पुलिस पर हमले के दौरान उनकी हरकतें रिकॉर्ड हो जाएंगी और सजा मिलेगी। यदि आंदोलनों, प्रदर्शनों और दंगों की बात छोड़ भी दें तो भी पुलिस के पास वैसे संसाधन नहीं हैं, जैसे अपराधियों के पास होते हैं। लगभग एक दशक पहले से पुलिस को आधुनिक सुरक्षा उपकरण, हथियार और वाहन देने की बात की जा रही है, लेकिन मिले नहीं। सोचने वाली बात है कि अपराधियों के पास अति आधुनिक हथियार होते हैं। दो सौ किलोमीटर प्रति घंटे की अधिक की रफ्तार से भाग सकने वाली गाड़ियां होती है। बाइकें होती हैं। दूसरी तरफ पुलिस बल को खटारा जिप्सी और बाइक का सहारा होता हैं। ऐसी स्थिति में वे चाहकर भी अपराधियों का पीछा कर उन्हें पकड़ नहीं पाते। नतीजा यह निकलता है कि वे असुरक्षा बोध से ग्र्रस्त हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में हम पुलिस के जवानों से बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? न तो उनकी ड्यूटी का ठिकाना होता है, न छुट्टी का। थानों में पर्याप्त स्टाफ की कमी के बावजूद कभी किसी वीआइपी की सुरक्षा में लगा दिए जाते हैं तो कभी क्षेत्र से गुजरने वाले वीआइपी की यात्रा में विघ्न न पड़े, इसलिए सड़क पर खड़ा कर दिए जाते हैं। सरकार को इस बारे में भी विचार करना चाहिए। यह ठीक है कि सबसे ज्यादा शिकायतें पुलिस विभाग के ही खिलाफ होती हैं, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि पुलिस जवानों की चिंता करनी ही छोड़ दी जाए। पुलिस की स्थिति को सुधारने के लिए बात तो हर सरकार करती है लेकिन ठोस कदम नहीं उठाए जाते। यह स्थिति दुखद है।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]