पंजाब सरकार एक तरफ तो प्रदेश से नशे को खत्म करने के लिए बड़े-बड़े दावे कर रही है, वहीं दूसरी तरफ सरकार की नाक के नीचे उसके खुद के कर्मचारी अपनी हरकतों से सरकार के प्रयासों पर पलीता लगाते नजर आ रहे हैं। गत दिवस ऐसा ही एक मामला मोगा में सामने आया, जहां पंजाब स्कूल एजुकेशन बोर्ड का मैनेजर व मोगा का डिप्टी मैनेजर दफ्तर में ही शराब पीते पकड़े गए। इससे पहले भी कई मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें सरकारी दफ्तर में शराब पीते हुए कर्मचारी, अधिकारी पकड़े गए हैं। पंजाब पुलिस के कर्मचारी तो आए दिन कहीं न कहीं ड्यूटी के दौरान भी नशे में धुत पाए जाते हैं। यह निस्संदेह चिंताजनक स्थिति है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि पंजाब किस कदर नशे की दलदल में धंसा हुआ है। प्रदेश को इससे बाहर निकालने के लिए विभिन्न स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं।

निश्चित रूप से प्रदेश सरकार भी इसके प्रति गंभीर नजर आ रही है, क्योंकि विधानसभा चुनाव में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाया था। यह बात और है कि इसके लिए सख्ती के साथ ही सरकार और उसके अधीन कर्मचारियों को आदर्श भी प्रस्तुत करना होगा। जब सरकारी कर्मचारी स्वयं नशे में धुत पड़े मिलेंगे तो आम जनता को कैसे समझाएंगे और रोकेंगे? मोगा के मामले में तो स्थिति और गंभीर है, क्योंकि पीएसईबी के जिस मैनेजर को गत दिवस मोगा क्षेत्रीय कार्यालय में नशे में धुत देखा गया वह यहां स्टेशनरी की जांच करने आया था। इस घटना से स्पष्ट है कि उसने किस तरह की जांच की होगी। शिक्षा विभाग में किसी भी स्तर पर किसी का भी ऐसा आचरण कतई स्वीकार्य नहीं है। प्रदेश सरकार को इसे गंभीरता से लेकर ऐसे चरित्र वाले कर्मचारियों, अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। साथ ही ऐसे नियम-कानून सख्त करने चाहिए, जिससे सरकारी मुलाजिमों को ऐसे आचरण से रोका जा सके। ऐसा करके ही सरकार आम जनता को अपनी कथनी और करनी के प्रति भरोसा दिला सकती है।

[ स्थानीय संपादकीय: पंजाब ]