हरियाणा के बिजली निगमों ने बिजली चोरी कम करने के लिए अनूठा फार्मूला खोज निकाला है। अब अधिक लाइन लॉस वाले फीडरों पर अधिक बिजली कट लगाए जा रहे हैं ताकि बिजली चोरी कुछ कम हो सके। खास बात यह है कि ये सभी फीडर शहरी या अद्र्धशहरी क्षेत्र के हैं और जहां बिजली चोरी पकड़ना निगम के लिए ज्यादा मुश्किल नहीं है। एक फीडर से अगर 80 से 85 फीसद बिजली खो रही है तो स्पष्ट है कि उस क्षेत्र में बिजली चोरी का रोग बहुत बड़ा है। लेकिन कुछ दिनों में बिजली व पेयजल आपूर्ति से जुड़े अफसरों को जिस तरह से लोगों का गुस्सा झेलना पड़ रहा है, उससे अधिकारी सीधे इन क्षेत्रों में कार्रवाई से कतराते हैं और नए तरीके खोजने का प्रयास कर रहे हैं। यह सही है कि सरकार स्पष्ट संकेत देना चाहती है कि पूरी बिजली चाहिए तो सबको बिल भरना होगा। यह संकेत तो बेहतर है लेकिन दूसरों के दंड की सजा ईमानदार उपभोक्ताओं को क्यों मिले? आवश्यक है कि उन्हें सरकार व निगमों से प्रोत्साहन मिले और चोरी करने वाले हतोत्साहित हों? प्रदेश में पंचायत व स्थानीय निकाय चुनाव में बिल भरने की शर्त जोड़ी गई तो बिजली केंद्रों पर बिल जमा करने वालों की लंबी कतार दिखने लगी। इसी तर्ज पर नौकरियों के आवेदन में भी यह शर्त जोड़ दी जाए तो निश्चित तौर पर क्रांति आ सकती है। इस दौरान वसूला गया पैसा ईमानदार उपभोक्ताओं को कुछ राहत दे सकता है। कम से कम महंगी दरों में तो राहत मिलेगी ही। आवश्यक है कि अन्य क्षेत्रों में भी उन्हें पर्याप्त सम्मान मिले। ऐसा कर चोरी की प्रथा पर चोट की जा सकती है। साथ ही आवश्यक है कि सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों से तेजी से जोड़े। ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार बिजली कट से परेशान लोग अब सोलर ऊर्जा को विकल्प के तौर पर अपनाने लगे हैं। ऐसे में सरकार अब किसानों को इस नीति से जोड़कर प्रदेश में सौर ऊर्जा की नई क्रांति ला सकती है। गांवों में किसानों के पास पर्याप्त स्थान है और हर गांव इस क्रांति से सीधे जुड़ सकते हैं। अगर ऐसा संभव हुआ तो ये गांव शीघ्र अन्न के बाद बिजली के बड़े आपूर्ति केंद्र बन सकते हैं। बस आवश्यकता है इस बिजली क्रांति को जन-जन तक पहुंचाने की।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]