हवाई सफर के दौरान एयर इंडिया के कर्मचारियों से बद्तमीजी करने और इस दौरान एक कर्मचारी को चप्पलों से मारने वाले शिवसेना के सांसद रवींद्र गायकवाड़ जिस तरह केवल उड्डयन मंत्री से खेद जताकर बच निकलना चाहते हैं वह शर्मनाक है। यह एक तरह से चोरी और सीनाजोरी का सटीक उदाहरण है। यह आश्चर्यजनक है कि शिवसेना नेतृत्व अपने अराजक सांसद के खिलाफ कोई कार्रवाई करने के बजाय तरह-तरह के कुतर्कों के जरिये उनका साथ दे रहा है। शिवसेना के इस रवैये से इसकी ही पुष्टि होती है कि अराजकता इस दल के डीएनए में घुल गई है और उसने दादागीरी को राजनीति का पर्याय समझ लिया है। गत दिवस रवींद्र गायकवाड़ ने लोकसभा में खुद को विनम्र बताने का जो स्वांग किया और उनके पक्ष में खड़े शिवसेना के अन्य नेताओं जिस तरह यह धमकी दी कि यदि उन पर लगे यात्रा प्रतिबंध को जल्द नहीं हटाया गया तो मुंबई से विमान नहीं उड़ पाएंगे वह अराजक राजनीति का ऐसा उदाहरण है जिसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। यदि सरकार इस धमकी के आगे झुकती है तो वह अपनी प्रतिष्ठा से समझौता करने के साथ ही राजनीति में फल-फूल रहे गुंडा तत्वों को बल प्रदान करने का ही काम करेगी। अगर गायकवाड़ सस्ते में छूट जाते हैं तो इससे जनता को यही संदेश जाएगा कि जनप्रतिनिधियों ने बदसलूकी का भी विशेषाधिकार हासिल कर लिया है। आम जनता के लिए यह भूलना कठिन है कि गायकवाड़ किस तरह टीवी कैमरों के समक्ष यह बता रहे थे कि उन्होंने एयर इंडिया के कर्मचारी को दो-चार नहीं पच्चीस चप्पल मारे।
यह ठीक नहीं कि गुंडागर्दी पर इतराने वाले अपने सदस्य के खिलाफ लोकसभा न्यूनतम सख्ती का भी इस्तेमाल करती नहीं दिखी। समझना कठिन है कि लोकसभा की आचरण समिति कुछ करने-कहने की स्थिति में क्यों नहीं है? क्या सांसद होने के नाते किसी को गुंडागर्दी करने का भी अधिकार मिल जाता है? यदि संसद पैसे लेकर सवाल पूछने वाले अपने सांसदों की सदस्यता खत्म करने का फैसला कर सकती है तो वह सरे आम गुंडागर्दी करने वाले सांसद को फटकार तक क्यों नहीं लगा सकती? गायकवाड़ की गुंडागर्दी के खिलाफ अन्य दलों के नेता जिस तरह मुश्किल से ही कुछ बोल पा रहे हैं उससे तो ऐसा लगता है कि वे सामंती मानसिकता से ग्रस्त होते जा रहे हैं। सबसे दयनीय यह है कि जो सांसद बोले भी उन्होंने भी किंतु-परंतु के साथ गायकवाड़ की तरफदारी ही की। जब एयर इंडिया और फिर उसके बाद अन्य एयर लाइंस ने गायकवाड़ पर यात्रा प्रतिबंध लगाया था तो ऐसा लगा था कि उन्होंने जल्दबाजी में यह कदम उठा लिया, लेकिन शिवसेना जिस तरह सरकार को धमकाने पर आमादा है उससे उक्त फैसला सही ही जान पड़ता है। गायकवाड़ जिस तरह अभद्र आचरण के बावजूद अभी तक पुलिस की कार्रवाई से बचे हुए हैं उससे यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या ऐसी ही रियायत आम आदमी को भी मिलेगी? क्या इस देश में सांसदों के लिए अलग कानून है और आम जनता के लिए अलग? यह दुखद है कि जब गुंडागर्दी पर गर्व करने वाले सांसद के खिलाफ कार्रवाई के मामले में कोई नजीर स्थापित की जानी चाहिए तब ऐसा कुछ होता नहीं दिखता।

[ मुख्य संपादकीय ]