प्रदेश में बिना लाइसेंस के बूचड़खानों का संचालन होना चिंता का विषय है। सरकार की ओर से उठाया गया कदम दुरुस्त है। अब इससे सतत प्रक्रिया का हिस्सा बनाने की जरूरत है।

सरकार की ओर से अवैध बूचड़खानों पर की गई कार्रवाई स्वागत योग्य है। यह सरकार की ओर से उठाया गया, देर से ही सही, मगर दुरुस्त कदम है। प्रदेश में अवैध बूचड़खाने वर्षों से संचालित हो रहे हैं। यह बात अलग है कि अभी तक शासन-प्रशासन ने इनकी ओर देखने की जहमत नहीं उठाई। ऐसा नहीं है कि पहली बार शासन के संज्ञान में इस मामले को लाया गया हो। वर्ष 2011 में भी यह बात सामने आई थी कि नगर निगम व नगर पालिका की ओर से जो बूचड़खाने चलाए जा रहे हैं वे पूरी तरह अवैध हैं। इनके पास न तो खाद्य सुरक्षा विभाग का लाइसेंस था और न ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की अनुमति। इस दौरान दो बूचड़खानों के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज किया गया लेकिन मामला अभी तक अदालत मे विचाराधीन ही है। देखा जाए तो बूचड़खाना स्थापित करने के लिए कुछ मानक निर्धारित हैं। इनके तहत बूचड़खाने का लाइसेंस लेने के लिए एक या दो नहीं तकरीबन एक दर्जन विभागों से अनुमति लेना आवश्यक है। इसके साथ ही पशु का वध करने के बाद इनके अपशिष्ट के निस्तारण के लिए भी उचित व्यवस्था करने की जरूरत होती है। इसके साथ ही जिस पशु का वध किया जाता है उसका स्वास्थ्य परीक्षण भी अनिवार्य है ताकि किसी बीमार पशु का वध न किया जा सके। इन तमाम मानकों को धता बताते हुए बूचड़खानों में पशुओं के वध करने का सिलसिला जारी था। यहां तक कि इसके जिम्मेदार महकमों ने भी इन बूचड़खानों की स्थिति जानने की कोशिश नहीं की। खाद्य निदेशालय के अनुसार प्रदेश में 14 बूचड़खाने हैं लेकिन वास्तव में यह संख्या सैकड़ों में है। इसके अलावा मांस की दुकानों में भी भी छोटे पशुओं को काट कर बेचा जाता है, इन पर नजर रखने का भी कोई इंतजाम नहीं है। वह तो भला हो उत्तर प्रदेश सरकार का। उत्तर प्रदेश में अवैध बूचड़खानों पर की कई कार्रवाई के बाद यहां भी सरकार व प्रशासनिक मशीनरी हरकत में आई और यह कदम उठाया। उम्मीद की जानी चाहिए कि यह कार्रवाई अब समय-समय पर संचालित होगी। सरकार को चाहिए कि बूचड़खानों का परीक्षण कर सभी में निर्धारित मानक पूरे करवाए और अवैध बूचड़खानों पर कठोर कार्रवाई के लिए नीति बनाई जाए।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]