आए दिन प्रदेश में कोई न कोई किसान कर्ज, फसल खराब होने, मुआवजा न मिलने जैसी मुसीबतों के बोझ की कीमत अपनी सांसों से चुकता कर रहा है।

पंजाब में किसानों की मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। हालात यह हैं कि एक समस्या खत्म होती नहीं कि दूसरी सिर उठा लेती है। अधिकतर किसान तो कर्ज से ही परेशान हैं और जो इससे परेशान नहीं हैं वे फसल खराब होने, खराब फसल का समय पर व उचित मुआवजा न मिलने अथवा फसल का उचित मूल्य न मिलने से मुसीबतों में घिरे हुए हैं। आए दिन प्रदेश में कोई न कोई किसान इन मुसीबतों के बोझ की कीमत अपनी सांसों से चुकता कर रहा है। गत दिवस भी बठिंडा के गांव लहरा बेगां के किसान ने सरकार की ओर से अधिग्र्रहीत की गई जमीन के मुआवजे का चेक न मिलने से परेशान होकर पटवारी के दफ्तर में ही जहरीला पदार्थ निगलकर आत्महत्या कर ली। बात सिर्फ मुआवजे के चेक की ही नहीं थी, बल्कि इस किसान के परिवार पर बैंक व आढ़ती का करीब पांच लाख रुपये का कर्ज भी चढ़ा हुआ था। इसी तरह बड़ी संख्या में कर्ज में डूबे हुए किसानों के पास उनकी फसल का उचित मूल्य ही एकमात्र रास्ता होता है, जिससे वे कर्ज चुका सकते हैं, लेकिन पिछले कुछ समय से प्रदेश में ऐसी कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं जब उचित मूल्य न मिलने के कारण किसानों ने अपनी फसल को सड़कों पर फेंक दिया। वीरवार को मोगा में भी किसानों ने उचित मूल्य न मिलने के कारण आलू की फसल को तालाब में फेंक दिया। यह स्थिति हरित क्रांति के अगुआ रहे प्रदेश के लिए निस्संदेह दुर्भाग्यपूर्ण है। प्रदेश के किसान कड़ी मेहनत कर अन्न उगाते हैं और केंद्रीय अन्न भंडार में बड़ा योगदान भी देते हैं, लेकिन वर्तमान में खेती घाटे का सौदा साबित होने लगी है। बढ़ती लागत और महंगाई ने कभी देश भर के किसानों के लिए मार्गदर्शक की भूमिका निभाने वाले प्रदेश के किसानों की कमर तोड़ दी है। प्रदेश में कृषि और किसानों की इस स्थिति के लिए सरकारें भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। यदि समय रहते उचित ध्यान दिया गया होता तो कदाचित यह स्थिति उत्पन्न ही नहीं होती। प्रदेश सरकार के साथ ही केंद्र को भी प्रदेश के किसानों की स्थिति पर ध्यान देना चाहिए, जबकि इसके विपरीत केंद्र सरकार ने गेहंू की फसल की कैश क्रेडिट लिमिट की दूसरी किस्त रोक ली है। इससे किसान और आढ़ती दोनों परेशान हो रहे हैं। प्रदेश व केंद्र सरकार को चाहिए कि वह किसानों की मुसीबतें कम करने के लिए शीघ्र और ठोस कदम उठाएं, ताकि प्रदेश का अन्नदाता एक बार फिर खुशहाल हो सके।

[ स्थानीय संपादकीय : पंजाब ]