राष्ट्रपति पद पर रामनाथ कोविंद के निर्वाचन से बिहार का गौरव बढ़ा है। वह यहां के राजभवन से राष्ट्रपति भवन पहुंचे हैं। इस गौरव की अनुभूति इसलिए और अधिक गहरी है क्योंकि राज्य विधानमंडल में राजग के अल्पमत होते हुए भी कोविंद को बहुमत हासिल हुआ। इसका श्रेय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को जाता है जिन्होंने उनके बिहार कनेक्शन को महत्ता देते हुए दल और गठबंधन का दायरा तोड़कर उनका खुलकर समर्थन किया। संयोग था कि संप्रग की उम्मीदवार मीरा कुमार भी बिहार की ही थीं लेकिन नीतीश कुमार इससे पहले ही कोविंद के लिए जदयू के समर्थन की घोषणा कर चुके थे। कोविंद यूपी के रहने वाले हैं लेकिन राज्यपाल की भूमिका में अपने करीब 22 महीने के कार्यकाल में उन्होंने खुद को जिस तरह यहां की परंपराओं, तीज-त्योहार और लोकजीवन के साथ सम्बद्ध किया, वह उत्कृष्ट कार्यशैली का उदाहरण है। श्री कोविंद बेशक भाजपाई पृष्ठभूमि रखते थे लेकिन राज्यपाल की भूमिका मिलने के बाद उन्होंने खुद को पूरी तरह पार्टी की राजनीति से परे रखा। यही वजह है कि उन्हें राज्यपाल बनाए जाने के फैसले पर अप्रसन्नता जताने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी बाद में उनके मुरीद हो गए। दरअसल, राज्य में राजग और महागठबंधन के बीच जबर्दस्त उठापटक के बावजूद श्री कोविंद ने राजभवन को विवाद से दूर रखा। शराबबंदी कानून सहित कुछ ऐसे अवसर आए, जब राज्यपाल की भूमिका अहम हो गई लेकिन कोविंद ने कोई ऐसा विवाद खड़ा नहीं होने दिया। कहने की बात नहीं कि राज्यपाल के रूप में श्री कोविंद ने श्रेष्ठ सांविधानिक परंपराओं का पालन किया। अपने ऐसे राज्यपाल को राष्ट्रपति की कुर्सी पर आसीन होते देखकर बिहार स्वाभाविक रूप से गौरवान्वित है। श्री कोविंद के निर्वाचन में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सोच से भी एक आदर्श परंपरा बिहार के नाम दर्ज हुई कि राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च सांविधानिक पद के चुनाव में सस्ती सियासत के बजाय व्यापक दृष्टिकोण रखकर फैसले किए जाने चाहिए। श्री कोविंद भारी बहुमत से निर्वाचित हुए। जदयू के समर्थन बगैर भी उन्हें लगभग इतनी ही बड़ी जीत मिलती लेकिन वह उस राज्य में बहुमत नहीं पाते जिसके राजभवन से वह राष्ट्रपति भवन पहुंचे। शायद कोविंद के दिल में भी यह कसक रह जाती लेकिन नीतीश कुमार के फैसले से यह नौबत नहीं आई।
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बिहार को स्वाभाविक रूप से गर्व है कि उसके राज्यपाल अब देश के राष्ट्रपति निर्वाचित हो गए हैं। रामनाथ कोविंद ने महज 22 महीने में राज्य की संस्कृति, परंपराओं और लोकजीवन के साथ जैसा सहज रिश्ता बना लिया था, उसकी याद हमेशा मिठास पैदा करेगी।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]