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ब्लर्ब में
अगर लोगों ने पानी के इस्तेमाल पर लचर रवैया नहीं छोड़ा तो वह दिन दूर नहीं है जब यह बात सही साबित होगी कि तीसरा विश्व युद्ध पानी के लिए ही होगा
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यह कहना कतई गलत नहीं होगा कि जल ही जीवन है। अगर दुनिया पानी पर लचर रवैया नहीं छोड़ेगी तो वह दिन दूर नहीं है जब यह बात साबित हो जाएगी कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिए होगा। मौजूदा दौर में पानी की कमी से न केवल प्रदेश बल्कि पूरा विश्व चिंतित है। इसीलिए जरूरी है कि पानी को बचाने के लिए हर पक्ष जिम्मेदारी निभाए। यदि आज हम पानी का संरक्षण करेंगे तो भावी पीढ़ी को मुश्किलों का सामना नहीं करना पड़ेगा। मई का पहला हफ्ता बीतते ही भीषण गर्मी के कारण प्रदेश में लोगों को पानी की कमी का सामना करना पड़ रहा है। राजधानी शिमला हो या प्रदेश का कोई अन्य भाग, गर्मी के मौसम में यह समस्या हर साल लोगों की परेशानी का सबब बन रही है। पानी की कमी के लिए सबसे अहम कारक इसकी बर्बादी है। हर दिन लोग पानी बर्बाद करते हैं, जिससे यह समस्या विकराल हो जाती है। दैनिक कार्यों से लेकर हर जगह पानी का मोल समझे बिना व्यर्थ बहाया जाता है। दूसरा कारक यह है कि जलापूर्ति के लिए जिम्मेदार सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य विभाग कभी खुलासा नहीं करता कि पानी के संकट से जूझने के लिए उसकी क्या रणनीति रहेगी? कैसे लोगों को इससे निजात दिलाई जाएगी? प्रतिवर्ष स्थिति जिस तरह बद से बदतर होती जा रही है, उससे बचने के लिए हम सबको साझा प्रयास करना होगा। जल संकट से निपटने के लिए सिर्फ सरकार के भरोसे रहना भी सही सोच नहीं है बल्कि लोगों को खुद जागरूक होना पड़ेगा। प्राकृतिक जलस्रोतों (कुओं व बावडिय़ों) का संरक्षण करने के लिए लोगों को ही कदम उठाने होंगे। नदियों को प्रदूषण से बचाना भी जनता की जिम्मेदारी है। आग लगने पर कुआं खोदने को कभी समझदारी नहीं कहा जा सकता। संकट आने से पहले उसके उपाय पर गौर करना ही सार्थक सोच है। लोगों को पानी की बर्बादी रोकनी होगी व उतना ही पानी प्रयोग करने को आदत बनाना होगा, जितनी जरूरत है। एक गांव, एक क्षेत्र के लोगों के चेतने से तस्वीर ज्यादा नहीं बदल सकती। प्रदेश में जल प्राकृतिक संसाधन के तौर पर केवल भूजल के रूप में ही उपलब्ध है व वहां भी भंडार सिकुड़ते जा रहे हैं। हमें बारिश की बूंदों को संजोने की आदत विकसित करनी होगी। सरकार और आमजन को नदियों और पानी के प्राकृतिक स्रोतों को बचाने के लिए अभी से गंभीर हो जाना चाहिए, ताकि भविष्य सूखा न हो पाए।

[ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश ]