भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने को तत्पर नीतीश सरकार ने अफसरों और कर्मचारियों को हर साल अपनी सम्पत्ति का ब्योरा देने का आदेश दे रखा है, उसके आदेश पर कर्मचारी हर साल सम्पत्ति का ब्योरा दे भी रहे हैं। इसे बाकायदा राज्य सरकार की वेबसाइट पर भी डाला जा रहा है। भ्रष्ट कर्मचारियों को दबोचने में राज्य सरकार का आर्थिक अपराध कोषांग भी सक्रिय है। हर महीने कोई न कोई बड़ी मछली उसके जाल में फंस ही जाती है। पिछले कुछेक सालों में भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़ी कार्रवाई पर गौर करें तो पूर्व आइपीएस, आइएएस व कई बड़े अभियंताओं पर गाज गिर चुकी है, इनकी काली कमाई सबके सामने आई है। कई की तो अवैध सम्पत्ति जब्त भी की जा चुकी है। कुछ के जब्त आलीशान मकानों में गरीब बच्चों की पढ़ाई को स्कूल संचालित किये जा रहे हैं। इस तरह आम आदमी के जेहन में यह बात तो घर कर ही चुकी है कि पूर्ववर्ती सरकारों की तुलना में आठ साल से चल रही जदयू की सरकार बेहतर कर रही है। लेकिन, यह भी सही है कि कुछ अच्छा होता है तो लोगों के मन में और अच्छा की उम्मीदें जन्म ले लेती हैं। भ्रष्टाचार के पहिए पर ब्रेक लगाने की दिशा में राज्य सरकार ने हाल ही में एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया है, आरक्षी उपाधीक्षक से नीचे यानी दारोगा स्तर के पुलिस अफसर को भी भ्रष्टाचार की भनक लगने पर तलाशी का अधिकार दे दिया गया है। लेकिन, राज्य सरकार के इस फैसले का आम लोगों के बीच नकारात्मक असर भी पड़ सकता है। इसके कारण भी हैं, पहले तो आमजनों के बीच पुलिस की छवि अच्छी नहीं है ऊपर से पुलिस महकमे में दारोगा तो ऐसा पद है जो खुद काली कमाई के लिए चर्चित है। किसी भी अपराध पर अनुसंधान की जिम्मेदारी दारोगा की ही होती है। यह जगजाहिर है कि दारोगा कितनी ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हैं। ऐसे में भ्रष्टाचार विरोधी अभियान के तहत किसी के घर की तलाशी लेने अगर दारोगा पहुंचेगा तो बखेड़ा होना तय है।

बहरहाल, राज्य सरकार ने जो अधिसूचना जारी की है उसमें यह कहा गया है कि भ्रष्ट तरीके से संपत्ति अर्जित करने वालों के खिलाफ अभियान चलाने के लिए लोगों के घरों में सघन तलाशी ली जा रही है, दस्तावेजों की जांच की जा रही है। तलाशी लेने अथवा दस्तावेज की जांच के लिए अवर निरीक्षक को भी शक्ति प्रदान कर दी गई है। अब आर्थिक अपराध ईकाई एवं निगरानी अन्वेषण ब्यूरो में नियुक्त पुलिस अवर निरीक्षक को भी किसी के घर की तलाशी लेने के लिए न्यायालय में लिखित परिवाद दायर करने की शक्ति दे दी गई है। सरकार का तर्क है कि इससे कालेधन के खिलाफ चलाए जा रहे उसके अभियान को और बल मिलेगा। सरकार की इस सूझबूझ पर तो किसी को शक नहीं होना चाहिए पर यह सवाल उठना भी लाजिमी है कि दारोगा स्तर का पुलिस अफसर तो खुद ही भ्रष्ट माना जाता है, जहां वह रहता है उसकी आन-बान और शान चर्चा में रहती है। ऐसे में कहीं वह कहावत हकीकत के रूप में सामने न जाए कि दूध की चौकीदारी बिल्ली कर रही है।

[स्थानीय संपादकीय: बिहार]