प्रदेश में अभी विद्युत आपूर्ति संतोषजनक है। विभाग के सामने मुख्य चुनौती अब व्यवस्था को बरकरार रखने की है ताकि चढ़ते पारे से आम जनता को राहत मिल सके।
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प्रदेश में सूरज का पारा चढऩे से शुरुआती दौर में लड़खड़ा रही विद्युत आपूर्ति व्यवस्था फिलहाल अब संतोषजनक कही जा सकती है। ऊर्जा निगम की यह सराहना इसलिए की जा रही है क्योंकि राज्य में चल रही विभिन्न विद्युत परियोजनाओं से प्रदेश को कुल मांग के सापेक्ष केवल एक तिहाई ही बिजली प्राप्त होती है। इन परिस्थितियों में प्रदेश में 22 से 24 घंटे तक बिजली मिलना एक बड़ा सुकून है। पड़ोसी उत्तर प्रदेश पर ही नजर डालें तो हाल ही में योगी सरकार ने गांव, तहसील, जिला मुख्यालय के लिए क्रमश: 18, 20 और 24 घंटे तक बिजली आपूर्ति के आदेश दिए हैं। वहां के लोगों के लिए यह फैसला किसी बड़े तोहफे से कम नहीं है। इस फैसले को उत्तराखंड के संदर्भ में देखा जाए तो शायद यहां यह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन सकता है। फिलहाल यहां कम उत्पादन के बावजूद विद्युत आपूर्ति का बड़ा कारण केंद्रीय पूल के साथ ही लंबी अवधि के करार वाली गैस परियोजना और बाजार से बिजली का इंतजाम करना भी है। यह बात दीगर है कि इसमें थोड़ा खर्च भी होता है। हालांकि, प्रतिवर्ष बिजली के बढ़ते बिल इसकी काफी हद तक भरपाई करते हैं। मौजूदा परिस्थितियों में जिस तरह से सूरज अपनी तपन तेज कर रहा है उसे देखते हुए निर्बाध विद्युत आपूर्ति कराना विद्युत विभाग के सामने सबसे बड़ी चुनौती भी है। दरअसल, बढ़ती गर्मी के साथ बिजली के उपयोग में भी तेजी आएगी। इन परिस्थितियों में सारा दारोमदार पावर ट्रांसमिशन कारपोरेशन ऑफ उत्तराखंड लिमिटेड (पिटकुल) और उत्तराखंड पावर कारपोरेशन लिमिटेड (यूपीसीएल) पर रहेगा। दरअसल, यह चिंता इसलिए जताई जा रही है क्योंकि ऊर्जा विभाग का इंफ्रास्ट्रक्चर तेजी से बढ़ती विद्युत आपूर्ति को सुचारू करने में थोड़ा कमजोर नजर आ रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में ट्रांसफार्मर कम क्षमता के हैं और लोड ज्यादा, ट्रांसमिशन लाइनें भी बूढ़ी हो रही हैं। जाहिर है कि अब ऊर्जा विभाग के साथ ही सरकार को इस ओर ध्यान देने की जरूरत है। इसके लिए केंद्रीय योजनाओं पर अधिक से अधिक जोर दिया जाना चाहिए। सरकार को चाहिए कि वह लंबित जल विद्युत परियोजनाओं के हल को केंद्र से मदद ले। इससे उत्तराखंड का ऊर्जा प्रदेश बनने का सपना साकार हो सकता है।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]