उत्तर प्रदेश की सत्ता के दावेदार राजनीतिक दलों ने बनारस को जिस तरह अपने शक्ति प्रदर्शन के मैदान में तब्दील कर दिया है उस पर हैरत नहीं। एक तो राजनीतिक दल कोई कोर कसर इसलिए बाकी नहीं रखना चाहते, क्योंकि चुनाव अपने अंतिम चरण में पहुंच गया है और दूसरे इसलिए भी कि बनारस प्रधानमंत्री का निर्वाचन क्षेत्र भी है। जहां भाजपा बनारस और आसपास की ज्यादा से ज्यादा से सीटें जीतकर यह संदेश देने की कोशिश में है कि अपने निर्वाचन क्षेत्र में नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का कोई सानी नहीं वहीं अन्य दल यह बताने की कोशिश में हैं कि वे प्रधानमंत्री को उनके संसदीय इलाके में ही मात देने में समर्थ हैं। फैसला मतदाता के हाथ है और वही यह तय करेंगे कि प्रतिष्ठा की लड़ाई में परिवर्तित हुआ आखिरी चरण का यह चुनाव किसके नाम रहा? बेहतर होता कि राजनीतिक दल यह समझ पाते कि अब मतदाता इतने भोले नहीं कि यह न समझ सकें कि उन पर यकायक इतना प्यार क्यों उड़ेला जा रहा है? यह उम्मीद की जानी चाहिए कि वे एक ओर जहां इसकी पहचान करेंगे कि विकास के मामले में बनारस की उम्मीदें पूरी क्यों नहीं हो सकीं वहीं दूसरी ओर इसकी परख भी करेंगे कि विकास के दावे करते दलों में कौन कसौटी पर खरा उतरने लायक है? पहचान और परख का यह काम सही तरह तभी हो सकता है जब विकास से इतर मसलों पर ध्यान देने से बचा जाए। मुश्किल यह है कि लंबे चुनाव प्रचार के चलते दलों के पास ज्यादा कुछ कहने को बचा नहीं है। नतीजा यह है कि आरोप-प्रत्यारोप का शोर अधिक है।
चुनाव के आखिरी वक्त राजनीतिक दल बनारस के प्रति अपने प्रेम का चाहे जितना प्रदर्शन कर रहे हों, सच्चाई यह है कि इस शहर की सूरत यह नहीं बताती कि उसके विकास की वैसी चिंता की गई है जैसी की जानी चाहिए थी। धर्म-अध्यात्म का केंद्र और प्राचीनतम शहर होने के नाते बनारस का जितना विकास होना चाहिए था वह मुश्किल से ही नजर आता है। आखिर दुनिया भर में नाम रखने वाला कोई शहर विकास की दौड़ में इतना पीछे कैसे छूट सकता है? जब इतना ऐतिहासिक शहर विकास की दौड़ में पीछे छूट गया तब फिर पूर्वांचल के पिछड़ेपन पर हैरानी जताने का मतलब नहीं। पूर्वांचल के इलाके पिछड़ेपन की जैसी कहानी बयान करते हैं उससे राजनीतिक दलों की ही पोल खुलती है। यह पहला चुनाव नहीं जिसमें पूर्वी उत्तर प्रदेश के पिछड़ेपन की चर्चा हो रही है। इसके पहले भी ऐसा हो चुका है और इससे यही पता चलता है कि इस क्षेत्र के विकास पर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया गया। इसका एक प्रमाण यह है कि विकास के कुछ काम ऐसे हैं जो पिछली से भी पिछली सरकार के समय शुरु हुए और अभी तक पूरे नहीं हुए। विकास के मामले में आज जो स्थिति बनारस और आसपास की है वैसी ही देश के कुछ अन्य क्षेत्रों की भी है। इन पिछड़े क्षेत्रों में विकास न होने की चर्चा तो खूब होती है, लेकिन उससे आगे और कुछ मुश्किल से ही होता है। ऐसे में जरूरत इस बात की है कि मतदाता अपनी वोट की शक्ति का सही प्रदर्शन करें।

[ मुख्य संपादकीय ]