उत्तर प्रदेश में बिजली के कारण होने वाले हादसे और किल्लत कोई नई बात नहीं है। शहर और गांव इससे दो-चार होते ही रहते हैं। ताजा वाकया फर्रुखाबाद के मेरापुर थाना क्षेत्र में हुआ जहां हाई टेंशन विद्युत तार गिरने से स्कूल जा रहे भाई-बहनों की मौत हो गई। प्रदेश में ऐसे हादसे पहले भी होते रहे हैं। कुछ वर्ष पहले बहराइच में बरात लेकर जा रही बस पर हाई टेंशन तार गिरा था। उस वक्त भी कई मौतें हुई थीं। सवाल उठता है कि इतने हादसों के बाद भी बिजली विभाग आखिर कोई प्रभावी कदम क्यों नहीं उठाता। क्यों दशकों पहले बिछाई गई विद्युत लाइनों को समय-समय पर सुधारा नहीं जाता। हालात इतने खराब हो गए हैं कि राज्य के सैकड़ों गांवों में, जहां आजादी के दो दशक के भीतर ही विद्युत लाइनें बिछा दी गई थीं, वहां आज तक तारों और खंभों की मरम्मत नहीं हो सकी है। इन गांवों मेंं कब कोई हादसा हो जाए कहा नहीं जा सकता। इस उदासीनता का सबसे बड़ा कारण बिजली विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार है।

पिछली राज्य सरकारों की कमजोर इच्छाशक्ति भी बदतर हालात की गवाही देती हैं। दुखद है कि बढ़ती बिजली की मांग को कभी महसूस ही नहीं किया गया। उपलब्ध बिजली में भी बड़ा हिस्सा चोरी और लाइन लॉस में जाता रहा पर अब हालात विस्फोटक हो चुके हैं। गर्मी शुरू होते ही बिजली की मांग बढ़ती है और इसके अनुरूप आपूर्ति न होने पर आंदोलन भड़कते हैं। गर्मी के चार महीनों में बिजली को लेकर कानून व्यवस्था की समस्या खड़ी होती रहती है। विगत दिनों भारतीय जनता पार्टी ने भी बिजली समस्या को लेकर राजधानी में बड़ा आंदोलन किया था। घबराई सरकार को समझ में आने लगा है कि अब काम नहीं चलने वाला। पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने 2012 तक सूबे में चौबीस घंटे बिजली दिलाने का वादा किया था, जो पूरा न हो सका। रुष्ट मतदाताओं ने भी फैसला सुनाया और मायावती को सत्ता से बाहर कर दिया।

मौका मिला समाजवादी पार्टी को। अब इस सरकार को बदहाल विद्युत लाइनों को दुरुस्त करने और किल्लत से निजात दिलाने में विलंब नहीं करना चाहिए। लोग सरकार की आर्थिक समस्याओं को भी खूब समझते हैं लेकिन वह सुधार की ओर उठते मजबूत कदम देखना चाहते हैं। उन्हें लगना चाहिए कि सरकारी तंत्र ईमानदारी से समस्या सुधारने के लिए प्रयासरत है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार भी चेतेगी।

(स्थानीय संपादकीयः उत्तर प्रदेश)