प्रदेश सरकार ने बिजली के कनेक्शन की दरें सस्ती करके न सिर्फ इसे लोगों की पहुंच में लाने का प्रयास किया है, बल्कि विद्युत चोरी पर रोक लगाने की दिशा में भी कदम बढ़ाया है। बिजली की चोरी को सूबे में लाइलाज रोग माना जाता है लेकिन, सरकार ने अब इसकी नब्ज भांपने की शुरुआत कर दी है। लोगों को अधिक से अधिक वैध कनेक्शन के लिए तभी प्रेरित किया जा सकता है जबकि उन्हें आसानी से बिजली के कनेक्शन हासिल हों, इसकी जटिलताएं खत्म हों और खुद सरकार पहल करके उपभोक्ताओं तक पहुंचे। वस्तुत: उपभोक्ता भरोसा चाहता है कि उसे योजनाओं की जटिलता में नहीं फंसाया जाएगा। अभी तक पॉवर कारपोरेशन यह भरोसा आम उपभोक्ताओं को देने में सफल नहीं हो सका है। उदाहरण के रूप में बिजली के सामान्य बकायेदारों को लें तो अधिसंख्य लोग सरकारी देनदारी के इस दलदल में इसलिए फंसे क्योंकि विभाग ने या तो उन्हें समय पर बिल नहीं भेजा या फिर गलत बिल भेज दिए। अब सरकार ने यदि कनेक्शन सस्ता किया है तो उसे इन समस्याओं की ओर भी ध्यान केंद्रित करना होगा। 1प्रदेश में 3.22 लाख घरों को बिजली की आवश्यकता है। विडंबना ही है कि दावों के बावजूद अभी तक 1.81 लाख घरों को कनेक्शन नहीं है। जिन घरों में कनेक्शन नहीं है, वहां कटिया से चोरी की आशंकाएं बढ़ती हैं। ऐसे कई मामले प्रकाश में भी आ चुके हैं। एक बड़ी समस्या लाइन लॉस की भी है। लाइन लॉस एक तिहाई से अधिक है, जिसमें लगभग आधा बिजली की चोरी से होता है। विभाग से जुड़े लोग बताते हैं कि यदि एक प्रतिशत लाइन लॉस भी कम कर लिया जाए तो 449 करोड़ रुपये का फायदा होगा जिसका सीधा असर बिजली की कीमतों पर पड़ेगा। सस्ते दर पर कनेक्शन देने की योजना कुछ हद तक लाइन लॉस कम करने में सहायक साबित हो सकती है क्योंकि वैध कनेक्शनों के जरिए ही चोरी को नियंत्रित किया जा सकता है। उप्र विद्युत नियामक आयोग ने देर से ही सही लेकिन, इस सत्य को समझा है। यह फैसला न सिर्फ विद्युत उपभोक्ताओं की संख्या बढ़ाएगा, बल्कि अवैध कनेक्शनों को वैध करने में भी सहायक साबित होगा।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]