देश विरोधी व माओवादी गतिविधियों से निपटने के लिए कई वर्ष पहले देश में गैरकानूनी गतिविधि निरोधक कानून (यूएपीए) लागू हुआ था। इस कानून के इस्तेमाल को लेकर कई दफा सवाल भी उठे थे। अब भांगड़ में बिजली सब स्टेशन परियोजना के विरोध करने वालों के खिलाफ यूएपीए कानून के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है। इस मामले में 22 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ है। इसमें नक्सल संगठन के नेता-नेत्री तो हैं ही साथ ही गांव के साधारण पुरुष व महिलाओं से लेकर परीक्षार्थियों को भी आरोपी बनाया गया है। कलकत्ता हाईकोर्ट में जब भांगड़ आंदोलनकारियोंके खिलाफ यूएपीए कानून लागू करने के खिलाफ याचिका दायर हुई तो हाईकोर्ट ने पुलिस व प्रशासन से स्पष्टीकरण मांगा कि विरोध करने वाले ग्र्रामीणों के खिलाफ उग्र्रवाद दमन के लिए बनाए गए कानून को क्यों लागू किया गया है? भांगड़ के आंदोलनकारियों पर लगाए गए यूएपीए कानून वापस लेने को लेकर वहां के लोगों ने कोलकाता में विरोध प्रदर्शन भी किया। उनके साथ वामपंथी नेता व कार्यकर्ता भी शामिल हुए। यहां यह बताना आवश्यक है कि केंद्र की संप्रग सरकार के शासनकाल में यूएपीए कानून पास किया गया था। बंगाल में पहली बार इस कानून के तहत तत्कालीन वामपंथी मुख्यमंत्री बुद्धदेव भïट्टाचार्य के शासनकाल में कार्रवाई हुई थी और माओवादियों को प्रतिबंधित संगठन घोषित किया गया था। इसके बाद माओवादी संगठन के प्रवक्ता गौड़ चक्रवर्ती को गिरफ्तार करने के बाद यूएपीए कानून के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था। उस समय तत्कालीन विपक्ष की नेत्री ममता बनर्जी ने यूएपीए कानून के खिलाफ मुखर हुई थीं। परंतु, सत्ता में आने के बाद वही ममता सरकार की पुलिस भांगड़ कांड में यूएपीए कानून के तहत कार्रवाई कर रही है। यहीं सवाल यह उठ रहा है कि जब वामपंथी शासन में थे तो यूएपीए कानून लागू करने की खिलाफत ममता कर रही थीं और अब जब ममता शासन में है और यूएपीए कानून के तहत कार्रवाई की जा रही है तो वामपंथी दल विरोध कर रहे हैं। ऐसा क्यों? क्या सत्ता में आने के बाद एक कानून अच्छा हो जाता है और विरोध में जाते ही खराब हो जाता है? इसे सियासी स्वार्थ नहीं तो और क्या कहा जाएगा? आखिर कब तक राजनीतिक दल अपने स्वार्थ के लिए कानून को लेकर सियासत करते रहेंगे? मोक्का, पोटा और डाडा जैसे कानून को लेकर सियासत हुई थी। वहीं इसके बाद जब से यूएपीए बना है तब से समय-समय पर सियासत हो रही है।
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(हाईलाइटर::: आखिर कब तक राजनीतिक दल अपने स्वार्थ के लिए कानून को लेकर सियासत करते रहेंगे? मोक्का, पोटा और डाडा जैसे कानून को लेकर सियासत हुई थी। वहीं इसके बाद जब से यूएपीए बना है तब से समय-समय पर सियासत हो रही है।)

[ स्थानीय संपादकीय : पश्चिम बंगाल ]