हरियाणा के लिए पानी का मसला जीवन-मरण का है। 50 साल में पानी ने कई बार प्रदेश में सरकारें बनाईं और कई दिग्गजों को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया। प्रदेश का बड़ा हिस्सा भूजल स्तर के मामले में डार्क जोन में है। खासकर दक्षिण व पश्चिमी हरियाणा में स्थिति काफी विकराल रूप धारण कर चुकी है। औद्योगिकीकरण की राह में सबसे बड़ी बाधा भी पानी व बिजली ही हैं। हरियाणा के गठन के समय से प्रदेश पानी के हक के लिए अदालती लड़ाई लड़ रहा है लेकिन फसल काटी केवल नेताओं ने। दोनों प्रदेशों की राजनीति इस मसले को ठंडा नहीं पड़ने देना चाहती और एसवाईएल का मसला आज तक नहीं सुलझ पाया। हरियाणा को अपने हिस्से का पानी न मिलने के कारण सारा पानी बहकर पाकिस्तान जा रहा है।
यह पानी हरियाणा ही नहीं पंजाब के किसानों को भी इतना ही दर्द दे रहा है। प्रदेश के किसान सूखे की स्थिति से चिंतित हैं और पंजाब के किसान जलस्तर बढ़ने से परेशान है। दक्षिण पंजाब के कई जिलों में सेम एक बड़ी समस्या बन रही है। अब पंजाब में कांग्रेस की सरकार है और हरियाणा में भाजपा की, निश्चित तौर पर अब दोनों दलों की सियासत दोनों प्रदेशों के किसानों को और अधिक रुलाने वाली है। पंजाब के नए मुख्यमंत्री ने शपथ लेते ही इस ओर इशारा भी किया है। वह प्रधानमंत्री से भी मिलने वाले हैं। हालांकि हरियाणा सरकार व विधायक इस मसले पर प्रधानमंत्री के सामने अभी तक अपना पक्ष नहीं रख पाए हैं। सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेशों के बावजूद हम नहर बनाने की राह में आगे कदम नहीं बढ़ा सके। ऐसे में आवश्यक है कि हरियाणा पानी के संकट से बचने के लिए वैकल्पिक राह तैयार करे। इस दौरान हिमाचल के रास्ते नहर बनाने का एक सुझाव दिया जा रहा है। पहाड़ों से नहर बना हरियाणा अपना हक प्राप्त कर सकता है। साथ ही आवश्यकता जल संरक्षण की है।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]