पटना हाईकोर्ट ने 41 निजी तकनीकी शिक्षा संस्थानों के 1300 छात्र-छात्राओं का दाखिला निरस्त करने का आदेश देकर राज्य में उच्च एवं तकनीकी शिक्षा के नाम पर चल रहे गोरखधंधे से पर्दा हटाया है। इनमें 15 इंजीनियरिंग कॉलेज तथा 26 डिप्लोमा संस्थान हंै। कोर्ट ने इन कॉलेजों को अभ्यर्थियों की फीस के अलावा क्षतिपूर्ति के तौर पर 50-50 हजार रुपये भुगतान करने का आदेश दिया है यद्यपि इस गोरखधंधे का तिकड़म समझने वालों को पता है कि कोर्ट के सख्त आदेश के बावजूद छात्र-छात्राओं के नुकसान की भरपाई संभव नहीं है। सबसे बड़ा नुकसान एक वर्ष की अवधि के रूप में है जिसे किसी भी तरह वापस नहीं लाया जा सकता। दूसरा नुकसान उस अवैध फीस का है जिसकी कोई लिखा-पढ़ी नहीं होती। बहरहाल, इसके लिए संबंधित छात्र-छात्राएं और उनके अभिभावक कम जिम्मेदार नहीं हैं जिन्होंने निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बगैर इन निजी कॉलेजों में दाखिला ले लिया। सभी विद्यार्थियों को जानकारी रहती है कि इंजीनियरिंग शिक्षा संस्थानों में प्रवेश परीक्षा की मेरिट के आधार पर दाखिला मिलता है। इसके बावजूद निजी संस्थानों के जाल में फंसकर धन और समय गंवाने वाले छात्र-छात्राएं इसके लिए खुद भी जिम्मेदार हैं। इनमें अधिसंख्य अभ्यर्थी साधारण एवं ग्रामीण पृष्ठभूमि वाले परिवारों के होते हैं जिन्हें कॉलेजों का 'डोनेशन' भरने के लिए मुश्किल से धन का प्रबंध करना पड़ा होगा। हाईकोर्ट के सामने जो विषय था, उस पर फैसला आ गया। अब गेंद राज्य सरकार के पाले में है। बड़ा सवाल यह है कि धन लिप्सा के चलते छात्र-छात्राओं के कॅरियर से खिलवाड़ करने वाले ये निजी शिक्षा संस्थान क्या सिर्फ फीस लौटाकर बरी हो जाएंगे? हर साल अरबों रुपये कमाने वाले इन धंधेबाजों के लिए कुछ करोड़ रुपये वापस कर देना कोई मायने नहीं रखता। इतनी बड़ी धोखाधड़ी के लिए क्या सिर्फ इतनी सजा पर्याप्त है? जिन संस्थानों ने 1300 छात्र-छात्राओं के साथ इतना बड़ा धोखा किया, उन्हें भविष्य में दाखिले लेने का अधिकार क्यों दिया जाए? क्या राज्य सरकार को इन संस्थानों को ब्लैकलिस्ट करके इनकी मान्यता हमेशा के लिए रद करने की संस्तुति नहीं करनी चाहिए? एक सवाल और भी है। यह कार्रवाई सिर्फ एक साल के दाखिलों को लेकर की गई है, जबकि यह धंधा कई वर्षों से जारी है। पिछले सालों में इसी तरह अवैध दाखिला लेकर जो छात्र-छात्राएं डिग्री-डिप्लोमा हासिल कर चुके हैं, उनका क्या होगा? बेहतर होगा कि हाईकोर्ट के फैसले की मंशा के आलोक में राज्य सरकार एक आयोग या समिति गठित करके निजी कॉलेजों की कार्यप्रणाली की गहन जांच करवाए ताकि इस 'बीमारी' का स्थायी इलाज किया जा सके।
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धनलोलुप निजी शिक्षा संस्थानों ने एक बार फिर बिहार में शिक्षा प्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। जो इंजीनियरिंग डिग्रियां-डिप्लोमा हासिल करने के लिए अभ्यर्थी प्रवेश परीक्षा की प्रतिस्पर्धा से गुजरते हैं, निजी संस्थानों ने धन लेकर वही डिग्रियां-डिप्लोमा बेचना शुरू कर दिया।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]