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किताबों के बिना ही एक महीने से पर्सनल कांटेक्ट प्रोग्राम के जरिए छात्रों को लेक्चर तो दिए जा रहें हैं। किताबों की अभी तक छपाई तक नहीं हो पाई
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जम्मू विश्वविद्यालय के डिस्टेंस एजुकेशन विभाग के जरिए पोस्ट ग्रेज्युएट कोर्स करने वाले हजारों विद्यार्थियों को परीक्षाओं के सिर पर होने पर भी पुस्तकें न उपलब्ध करवाया जाना उनके भविष्य से खिलवाड़ जैसा है। विडंबना यह है कि विभाग में बिना किताबों के ही पिछले एक माह से पर्सनल कांटेक्ट प्रोग्राम के जरिए छात्रों को लेक्चर तो दिए जा रहे हैं, लेकिन पढऩे के लिए किताबें तक नहीं दी गई है। इसे विभाग की घोर लापरवाही ही करेंगे कि अभी तक किताबों की छपाई तक नहीं हो पाई। इसका बड़ा कारण यह है कि छपाई के लिए कागज यूनिवर्सिटी के डिस्टेंस एजुकेशन विभाग ने देना होता है। इसकी छपाई भी जम्मू में ही करवाई जाती है। ऐसा न होने की सूरत में विद्यार्थियों को बाहरी राज्यों से भी पुस्तकें नहीं मिल पा रही है। हद तो यह है कि विभाग पुस्तकों की छपाई के लिए अभी तक कागज का ही बंदोबस्त करवा सका है, जबकि पेपर इसी माह अप्रैल माह में शुरू होने जा रहे हैं। डिस्टेंस एजुकेशन के जरिए विभाग अग्रेजी, सोशियोलॉजी, एजुकेशन, ङ्क्षहदी सहित अन्य विषयों में कोर्स करवाती है। विश्वविद्यालय में हरेक को रेग्युलर दाखिला नहीं मिल पाता। अधिकतर छात्र घर बैठ कर ही पोस्टग्रेज्युएट कोर्स कर उच्च शिक्षा पाना चाहते हैं। अगर जम्मू विश्वविद्यालय का छात्रों से इस तरह का भद्दा मजाक होता रहेगा तो छात्रों का भी इस विद्यालय पर से भरोसा उठ जाएगा, क्योंकि छात्रों को अभी तक सिलेबस का पता नहीं है। अगर देश की प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटी जो ए प्लस ग्रेड का रुतबा रखती है, छात्रों को इस तरह नजरअंदाज करेगी तो उसे इस सम्मान का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए। अप्रैल में होने वाली परीक्षाओं का क्या नतीजा निकलेगा वह किसी से छिपा नहीं होगा। यूनिवर्सिटी की इस लापरवाही से करीब बीस हजार छात्रों के भविष्य पर बादल मंडरा रहे हैं। इस मामले को जम्मू विश्वविद्यालय के चांसलर जो कि राज्य के गर्वनर भी हैं, को भी हस्तक्षेप करने की जरूरत है। अगले सेमिस्टरों के लिए अभी से पुस्तकों की छपाई हो जानी चाहिए ताकि छात्रों का विश्वास बना रहे। वाइस चांसलर को भी चाहिए कि किताबों की छपाई के लिए कागज की खरीद का जिम्मा यूनिवर्सिटी को सौंपा गया है, की पूरी जिम्मेदारी प्रकाशकों को सौंपें। जिससे कि इस कसरत को आसान बनाया जा सके। यूनिवर्सिटी को सभी छात्रों को एक तराजू में तोलने की जरूरत है। यह तभी संभव होगा कि जब विश्वविद्यालय अपनी प्राथमिकताओं को तय करे।

[ स्थानीय संपादकीय : जम्मू-कश्मीर ]