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स्कूल में अगर बच्चे खाली बैठे रहते हैं तो वे पढऩे-लिखने सीखने से वंचित रहते हैं। जरूरी है कि कक्षाओं में पर्याप्त शिक्षक हों।
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जरूरी नहीं पिछड़ापन क्षेत्र विशेष या लोगों में ही हो। सरकार की नीतियां व उन्हें लागू करने वाले भी इसके शिकार होते हैं। हिमाचल जैसे पहाड़ी प्रदेश के जनजातीय क्षेत्र भरमौर को बेशक पिछड़ा माना जाता है, लेकिन वहां के लोगों की शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधा के लिए जागरूकता आंखें खोलती है। यहां राजकीय माध्यमिक पाठशाला लग्गा में पांच माह से एक भी शिक्षक नहीं होना अभिभावकों को ऐसा अखरा कि उन्होंने स्कूल भवन पर ही ताला लगा दिया। आवाज जिला मुख्यालय चंबा तक पहुंची तो सुनी भी गई। प्रतिनियुक्ति पर दो शिक्षक भेजे गए, लेकिन 60 बच्चों की भविष्य की चिंता में डूबे अभिभावक अब उनकी नियमित नियुक्ति पर अड़े हैं। लग्गा स्कूल तो बानगी भर हैं, दूर दराज के क्षेत्रों में शिक्षा के मंदिरों का सूना होना नई बात नहीं। शिक्षकों के पद रिक्त होने से शिक्षा की गुणवत्ता पर असर पर पड़ रहा है। प्रारंभिक साक्षरता वाला समय ऐसा होता है जब बच्चों पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है। खासकर सरकारी स्कूलों के बच्चों की शिक्षा पर, क्योंकि इनमें से अधिकांश सीधे पहली कक्षा में दाखिला ले रहे होते हैं। अगर इनका शुरू में ध्यान नहीं रखा जाता तो वे पठन-लेखन का कौशल विकसित नहीं कर पाते। इसका असर भविष्य में उनकी पढ़ाई पर भी पड़ता है। अगर वे अगली कक्षाओं में पढऩा-लिखना नहीं सीख पाते तो उनके स्कूल छोडऩे की आशंका बढ़ जाती है। स्कूल में अगर बच्चे दिनभर खाली बैठे रहते हैं तो उनका स्कूल न आने वाले बच्चों में कोई खास अंतर नहीं रह जाता। दोनों ही पढऩे-लिखने सीखने से वंचित रहते हैं। इसलिए जरूरी है कि प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ाने के लिए पर्याप्त शिक्षक हों। क्योंकि इससे बच्चों को तकनीकी तौर पर शिक्षा का अधिकार तो मिलता है, मगर शिक्षा की वह गुणवत्ता नहीं मिल पाती जो उन्हें आगे शिक्षा जारी रखने में मदद करे। इस नजरिये से भी प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा में विशेष ध्यान देने की जरूरत है। खास कर जनजातीय क्षेत्र में, जहां निजी स्कूल भी नहीं होते। बच्चों के स्कूल में खाली बैठने वाली स्थितियां न पैदा हों इसके लिए सही नीति की जरूरत है। सरकार बच्चों के साथ-साथ शिक्षकों की जरूरत को भी समझे ताकि वे शहरों से दूर गांव का रूख करने से डरे नहीं। समय-समय जांच जाए कि स्कूलों में स्टाफ की क्या स्थिति है। शिक्षा के मंदिर में बड़ी होती इस पौध को उन हाथों की जरूरत है जो समय पर उन्हें सींच सके।

[ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश ]