यह सुविधाजनक भी है कि गांव में निर्माण के लिए नक्शा वहां की पंचायत में ही पास हो जाएगा। यदि कोई दूसरी एजेंसी रहती तो लोगों को ज्यादा भागदौड़ करनी पड़ती।
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सरकार का यह कदम स्वागत योग्य है कि गांव में बनने वाली संरचना का भी नक्शा बनेगा और उसे पंचायतें स्वीकृति प्रदान करेंगी। अब तक गांवों में इस प्रकार का प्रचलन नहीं था। आबादी बढ़ी है तो गांव में भी जनसंख्या घनत्व बढ़ गया है। एक घर से कई नए घर सृजित हो चुके हैं। ऐसे में नियोजित विकास समय की जरूरत है। संपूर्ण स्वच्छता के लिए गांव में भी जल निकासी, पेयजल और शौचालय आदि के निर्माण की अनिवार्यता होनी चाहिए। बिना नक्शा स्वीकृत कराए निर्माण होने से एकरूपता नहीं रह जाती है। अच्छी बात यह कि सरकार इसके लिए नक्शा एवं भवन निर्माण नियमावली 2016 का ड्राफ्ट तैयार कर चुकी है। पंचायती राज विभाग ने इस बारे में प्रस्ताव तैयार किया है। मंत्रिपरिषद की मंजूरी के बाद यह नियमावली पूरे राज्य में प्रभावी हो जाएगी। अभी अधिकतर गांवों में जल निकासी की समस्या है। इसकी वजह अनियोजित निर्माण ही है। लोग तो गांव की सड़क और अपने घर के बीच कोई फासला तक नहीं रखना चाहते। कई गांवों में तो यह विवाद हो जाता है कि नाली घर के सामने से बनेगी या नहीं। अब गांव पुराने जैसे नहीं रहे। शहर की सारी सुविधाएं गांवों में व्याप्त हैं। यह सुविधाजनक भी है कि गांव में निर्माण के लिए नक्शा वहां की पंचायत में ही पास हो जाएगा। गांव के लोगों को परेशानी नहीं होगी। यदि कोई दूसरी एजेंसी रहती तो लोगों को ज्यादा भागदौड़ करनी पड़ती। अब गृह निर्माण के लिए ऋण मिलने का रास्ता भी साफ हो जाएगा। पहले बैंक गांवों में घर बनाने के लिए लोन इस कारण भी नहीं देते थे कि वहां नक्शे की स्वीकृति नहीं दी जाती थी। बैंक ऋण के लिए नक्शा स्वीकृत होना अनिवार्य था। अब यह सुविधा लोगों को मिलेगी। सबको आवास योजना के तहत इनदिनों लोगों को सरकार की ओर से छूट प्राप्त है। लोग इसका भी लाभ ले सकेंगे। लेकिन, अभी इसके लागू होने को लेकर बाधाएं भी कम नहीं हैं। नक्शा पास करने के लिए तकनीकी ज्ञान बहुत जरूरी है। क्या पंचायत के स्तर पर ऐसी व्यवस्था अभी है? शायद नहीं। पंचायतों के लिए यह जरूरी होगा कि नक्शा की स्वीकृति देने के लिए कुछ ठोस शर्त तय करे। केवल खानापूर्ति करने से वह लक्ष्य नहीं मिलेगा, जो सरकार चाह रही है। नक्शा स्वीकृति का अधिकार मिलने से पंचायतों की आमदनी भी बढ़ेगी।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]