सड़क दुर्घटनाएं रोकना सरकार या प्रशासन की ही जिम्मेदारी नहीं है। लोगों को चाहिए कि वे भी यातायात नियमों का सख्ती से पालन करें।
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पहाड़ी प्रदेश हिमाचल में आए दिन होने वाले सड़क हादसे यह बताने के लिए काफी हैं कि कहीं कोई सबक नहीं सीखा जा रहा है। हादसों में अब तक कई लोगों की जान जाने और कइयों को उम्रभर के लिए जख्म मिलने के बावजूद लोग यातायात नियमों के प्रति जागरूक नहीं हो रहे हैं। महज पुलिस या यातायात कर्मी को देखकर ही यातायात नियमों का पालन करना सही नहीं है। शिमला जिला में नेरवा के निकट गुम्मा में निजी बस के खाई में गिरने के हादसे को लोग अभी भूले भी नहीं थे कि सिरमौर जिला में सड़क हादसे कई लोगों को दर्द दे गए। सिरमौर जिला में दो दिन में सड़क हादसों में दस लोगों की मौत हो गई। प्रदेश सरकार ने सड़क हादसों को रोकने के लिए कई अभियान चलाए हैं मगर उनका असर लोगों पर होता नहीं दिख रहा है। जरूरत इस बात की है कि हादसों के कारण तलाश कर समस्या को हमेशा के लिए दूर किया जाए। अकसर देखा जाता है कि प्रदेश में किसी हादसे के बाद प्रशासन काफी सक्रियता दिखाकर कुछ दिन के लिए वाहन चालकों पर शिकंजा कसता है। ऐसा करना सही है मगर हादसे रोकने के लिए ऐसी सक्रियता निरंतर दिखाई जानी चाहिए। यह भी पड़ताल की जानी चाहिए कि प्रदेश में अब तक हुए हादसों के बाद बनी जांच कमेटियों की रिपोर्ट का क्या हुआ? जांच रिपोर्ट में निकले तथ्यों पर अमल भी हुआ या नहीं? सांप निकल जाने के बाद लाठी पीटने के प्रथा सही नहीं है। जांच यदि हुई है तो यह भी देखा जाना चाहिए नतीजा भी निकले। हिमाचल में होने वाले सड़क हादसों का कारण मानवीय चूक तो है ही, साथ ही सड़कों की खस्ताहालत भी इनके लिए कम जिम्मेदार नहीं है। तीखे मोड़ व ब्लैक स्पॉट अकसर हादसों का कारण बनते हैं। राष्ट्रीय राजमार्गों को छोड़कर कई ऐसे संपर्क मार्ग हैं जहां पर क्रश बैरियर व पैरापिट नहीं हैं। ये सारी कमियां दूर की जानी चाहिएं। मालवाहकों में सफर पर रोक लगे तो भी कई हादसे थम सकते हैं। असल में सड़क दुर्घटनाएं रोकना सरकार या प्रशासन की ही जिम्मेदारी नहीं है। लोगों को चाहिए कि वे यातायात नियमों को सख्ती से अपनाएं। छोटे बच्चों को वाहन न चलाने दें। खुद भी वाहन चलाते समय गति पर नियंत्रण रखें। यदि हर पक्ष सहयोग दे, तभी सड़क हादसों पर अंकुश लग सकता है।

[ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश ]