खुद की सुरक्षा अहम
हर हाल में खुद की सुरक्षा अहम है। थोड़ा धैर्य और विवेक से काम लिया गया होता तो शायद इस हादसे में काल कवलित हुए लोग आज हमारे बीच होते और प्रकाशोत्सव की उपलब्धि पर इतरा रहे बिहार को गहरा सदमा न लगा होता।
मकर संक्रांति की शाम पटना की नाव दुर्घटना प्रशासनिक बदइंतजामी के साथ-साथ कई बिंदुओं की ओर इशारा कर रही है। जो हालात बने, उससे ऐसी दुर्घटना का होना आश्चर्यजनक नहीं। पतंगोत्सव के बाद लोगों ने अपना धैर्य खो दिया। यह पाठ हर घर में पढ़ाया जाता है कि दुर्घटना से देर भली, लेकिन इस हादसे के शिकार लोगों ने इस सबक को मजबूरीवश शायद भुला दिया था। उन्होंने अपने साथ-साथ उन बच्चों को भी काल के कटोरे में बिठा दिया, जो भावी दुर्घटना को भांप नहीं सकते थे। हर हाल में खुद की सुरक्षा अहम है। थोड़ा धैर्य और विवेक से काम लिया गया होता तो शायद इस हादसे में काल कवलित हुए लोग आज हमारे बीच होते और प्रकाशोत्सव की उपलब्धि पर इतरा रहे बिहार को गहरा सदमा न लगा होता। लापरवाह अधिकारियों की वजह से बिहार को हमेशा ऐसी बदनामी से गुजरना पड़ा है। छठ और रावण वध के दौरान हुई भगदड़ बड़े उदाहरणों में से हैं। शासन ने छठ घाटों पर व्रतियों को सुगमता से पहुंचने के लिए चचरी पुल का निर्माण कराया था, लेकिन यहां भी प्रशासनिक विफलता सामने आई। रावण वध के दौरान हुई भगदड़ में भी यह बात सामने आई थी कि भीड़ नियंत्रण को कनीय अधिकारियों के भरोसे छोड़ दिया गया था।
हादसे के बाद ही कुछ अहम सवाल खड़े होते हैं। इसपर हमेशा निगाह रहनी चाहिए कि नौका परिचालन को लेकर तय नियम का पालन हो रहा है या नहीं। सूर्योदय के पूर्व और सूर्यास्त के बाद नाव का परिचालन निषिद्ध है, जबकि यह घटना निषिद्ध अवधि में हुई। सबसे गंभीर बात यह कि पर्यटन विभाग ने पतंगोत्सव का आयोजन किया था तो लोगों के वहां पहुंचने और वापसी के इंतजाम पर भी पूरी नजर रखने की जरूरत थी। ऐसा नहीं कि नाव में बैठ रहे लोगों को सुरक्षा की चिंता नहीं हुई होगी। वे वस्तु स्थिति को समझते हुए भी मौत की यात्र के लिए मजबूर हुए होंगे। नाविकों की मनमानी हमेशा उजागर हुई है। क्षमता से ज्यादा लोगों को नाव में बिठाना और ज्यादा से ज्यादा पैसे कमाने की चाहत ऐसी दुर्घटनाओं को जन्म देती है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इन हर पहलुओं पर जांच के आदेश दिए हैं। यदि भविष्य में ऐसी दुर्घटनाओं को रोकना है तो जांच के बाद जिम्मेदार लोगों को कड़ी सजा देते हुए यह संदेश भी देना होगा कि जानलेवा लापरवाही किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं। आम लोगों को भी खुद की सुरक्षा के प्रति सचेत होना होगा।
[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]