प्रदेश में शराब के कारण न सिर्फ हादसे होते हैं, अपितु कई घर भी बर्बाद हो चुके हैं। यही कारण है कि शराब ठेकों के खिलाफ विरोध के स्वर बुलंद होते जा रहे हैं।

पंजाब में आखिरकार वही होता हुआ दिखाई दे रहा है, जिसकी आशंका जताई जा रही थी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद स्टेट व नेशनल हाईवे के पांच सौ मीटर के दायरे में आने वाले शराब ठेके हटाने का काम तो शुरू हुआ, लेकिन साथ ही इन्हें आबादी वाले क्षेत्रों में स्थापित करने की कोशिश भी की जा रही है। निस्संदेह इसका विरोध होना ही था और हो भी रहा है। रविवार को भी जालंधर, गुरदासपुर, पटियाला जिले में ग्रामीण आबादी के पास शराब ठेका खुलने का ग्रामीणों ने जमकर विरोध किया और मार्ग जाम कर दिया। गत दिवस भी फतेहगढ़ साहिब के गांव नानौवाल व ककराला कलां में महिलाओं ने शराब ठेके तोड़ दिए थे और यहां मौजूद सामान को आग लगा दी थी। विगत कुछ दिनों में प्रदेश के अन्य जिलों में भी शराब ठेकों के खिलाफ धरना-प्रदर्शन की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि प्रदेश में शराब के कारण न सिर्फ बड़ी संख्या में हादसे होते हैं, अपितु इससे कई घर भी बर्बाद हो चुके हैं। यही कारण है कि शराब ठेकों के खिलाफ प्रदेश भर में विरोध के स्वर लगातार बुलंद होते जा रहे हैं। प्रदेश में कई पंचायतें ऐसी हैं, जो अपने यहां से शराब के ठेके हटाने के लिए लामबंद हो चुकी हैं और उन्होंने इसके लिए प्रस्ताव पास कर पंचायतों को शराबमुक्त भी करवाया है। यह भी सर्वविदित है कि पंजाब नशे की पीड़ा से कराह रहा है और इससे उबरने के लिए तमाम दावे, प्रयास भी किए जा रहे हैं। जब एक तरफ प्रदेश को इस बीमारी से मुक्त करने के प्रयास चल रहे हों, तब सरकार को आबादी वाले क्षेत्रों, गांवों में शराब के ठेकों का विस्तार होने से भी रोकना चाहिए। चूंकि मामला राजस्व से जुड़ा है और शराब की बिक्री से सरकारी खजाने के एक बड़े हिस्से की पूर्ति होती है इसलिए सरकार के लिए यह कतई आसान नहीं है कि शराब के ठेके पूरी तरह बंद कर दिए जाएं, लेकिन साथ ही यह भी याद रखना चाहिए कि जनता के स्वास्थ्य, सुरक्षा और प्रदेश की शांति से बढ़कर कुछ नहीं हो सकता। जब बिहार जैसे राज्य जोकि विकास की दौड़ में पंजाब से बहुत पीछे है, वहां शराबबंदी लागू हो सकती है तो पंजाब में भी इसकी संभावनाएं तलाशने में कतई कोई झिझक नहीं होनी चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय : पंजाब ]