यह राहतकारी है कि बैंकों में फंसे अपने कर्ज को चुकाने के मामले में हीलाहवाली करने वालों से वसूली का खाका तैयार कर लिया गया है और उस पर अमल की शुरुआत बड़े बकायेदारों से की जाएगी। ऐसा कोई कदम इसलिए अपेक्षित था, क्योंकि केंद्र सरकार ने हाल में बैंकिंग कानून में अहम बदलाव संबंधी एक अध्यादेश जारी किया था। यह अध्यादेश फंसे कर्जे के कारण संकट का सामना कर रहे बैंकों को बचाने के मामले में सरकार की गंभीरता को बयान करता है। अच्छा होगा कि बैंकों की बढ़ती गैर निष्पादित संपत्तियों यानी एनपीए को लेकर सरकार को घेर रहे विरोधी दलों के नेता इस पर प्रकाश डालें कि उन्होंने सत्ता में रहते समय रिजर्व बैंक को पर्याप्त अधिकार देने की जरूरत क्यों नहीं समझी? रिजर्व बैंक को एनपीए के मामले में जिस तरह इतने लंबे समय बाद आवश्यक अधिकार प्रदान किए जा सके उससे यदि कुछ स्पष्ट हो रहा है तो यही कि नियामक संस्थाओं के गठन के साथ ही उन्हें पर्याप्त अधिकार देना भी आवश्यक होता है। आखिर ऐसी संस्थाएं ही शासन-प्रशासन के प्रति लोगों के भरोसे को बढ़ाने का काम करती हैं। चूंकि अध्यादेश के जरिये बैंकिंग कानून में बदलाव कर रिजर्व बैंक को और अधिकारों से लैस कर दिया गया है इसलिए सरकार के साथ उसकी भी जिम्मेदारी बढ़ गई है। इस जिम्मेदारी का निर्वहन इस रूप में होना चाहिए ताकि न तो छल-कपट के इरादे से कर्ज लेने वाले मनमानी कर सकें और न ही बैंक आधी-अधूरी जानकारी देकर कर्तव्य की इतिश्री कर सकें। यह सामान्य बात नहीं कि कई बैंकों ने गैर निष्पादित संपत्तियों के मामले में लापरवाही का परिचय दिया। यह एक तथ्य है कि कर्ज लेने वालों के साथ-साथ बैंकों के ढुलमुल रवैये के कारण ही गैर निष्पादित संपत्ति लाखों करोड़ रुपये में पहुंची।
ताजा आंकड़ों के अनुसार अकेले सरकारी बैंकों की कुल गैर निष्पादित संपत्ति 6.7 लाख करोड़ रुपये की है। यह बैंकों को अस्थिर करने के साथ ही देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाने वाली बड़ी राशि है। यह सही है कई बार उद्योग-व्यापार सही तरह नहीं चल पाते और उन्हें असमय बंद करने की नौबत आती है, लेकिन इसका कोई औचित्य नहीं कि कर्ज लेने वाले उसे लौटाने में सक्षम होने के बाद भी खुद को कर्ज चुकाने में अक्षम घोषित करने की राह पर चल निकलें। जानबूझकर कर्ज चुकाने में आनाकानी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई इसलिए जरूरी हो गई है, क्योंकि देश में एक ऐसा माहौल बनाया जा रहा कि बड़े उद्यमी तो हजारों करोड़ रुपये का कर्ज न चुकाने के बाद भी कार्रवाई से बचे रहते हैं और सामान्य कर्ज वापस न करने वालों पर हर तरह की कार्रवाई होती है। विडंबना यह है कि इस तरह का माहौल बनाने का काम उस कांग्र्रेस के नेता भी कर रहे हैं जिसके शासनकाल में फंसे कर्जे की राशि में अनाप-शनाप बढ़ोतरी हुई। कांग्रेस विजय माल्या सरीखे उद्यमियों का उल्लेख कर मोदी सरकार को भले ही घेरती हो, लेकिन सच यही है कि ऐसे अनेक उद्यमियों को संदिग्ध तरीके से कर्ज देने का काम संप्रग सरकार के समय ही हुआ। सरकार और रिजर्व बैंक को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कर्ज लेने और लौटाने की पूरी प्रक्रिया पारदर्शी होने के साथ ही जवाबदेही वाली हो।

[ मुख्य संपादकीय ]