मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की इस बात से असहमत नहीं हुआ जा सकता कि अपने मौजूदा विकास मॉडल और शराबबंदी जैसे कदमों से बिहार बाकी राज्यों के लिए नजीर बनता जा रहा है। राज्य बेशक कई तरह की कठिनाइयों का भी सामना कर रहा है। बीच-बीच में ऐसी घटनाएं हो रहीं जिनसे राज्य की छवि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके बावजूद पूर्ण शराबबंदी, गुरु गोविंद सिंह प्रकाशोत्सव, चंपारण सत्याग्रह शताब्दी आयोजन, मुख्यमंत्री के सात निश्चय, बाल विवाह निषेध तथा दहेजबंदी जैसे अभियानों से राज्य की सकारात्मक छवि बन रही है। इसके पीछे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की छवि और सोच का अहम योगदान हैं जिन्हें इन सभी फैसलों का कल्पनाकार माना जाता है। बहरहाल, कुछ क्षेत्र हैं, जो सीधे आम आदमी से जुड़े हैं। इन क्षेत्रों में अविलंब व्यापक सुधार की जरूरत है। शिक्षा ऐसा ही क्षेत्र है जिसने पिछले कुछ सालों में राज्य को सिर्फ कलंकित किया। मुख्यमंत्री के निर्देश पर शिक्षा क्षेत्र में सुधार के लिए रोडमैप तैयार किया जा रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इसके क्रियान्वयन से परिदृश्य बदलेगा। फिलहाल सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण क्षेत्र है, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य। राज्य की सामाजिक परिस्थितियां देखते हुए सरकारी चिकित्सा सेवा को पूर्ण जवाबदेह बनाए जाने की जरूरत है यद्यपि मौजूदा हालात इसके कतई विपरीत हैं। दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य में बिजली, पर्यटन ,पथ परिवहन और कई अन्य विभागों की उपलब्धियों के बीच चिकित्सा एवं स्वास्थ्य क्षेत्र से घोटालों, अस्पतालों में अव्यवस्था और मरीजों की दुर्गति की ही खबरें सुनने को मिलती हैं। इस क्षेत्र में बगैर देर किए ‘बड़ा ऑपरेशन’ किए जाने की जरूरत है। राज्य के दूरगामी एवं स्थायी विकास के नजरिए से सर्वाधिक महत्वपूर्ण क्षेत्र है, निजी पूंजी निवेश। इस दिशा में अब निर्णायक प्रयास किए जाने की जरूरत है क्योंकि जब तक पूंजी निवेश नहीं होगा, राज्य की छवि में स्थायी निखार नहीं आएगा। इसे लेकर अब तक हुए प्रयासों का सार्थक परिणाम नहीं निकला। कई अनुकूलताओं के बावजूद राज्य में कानून व्यवस्था और भूमि उपलब्धता जैसी कठिनाइयों के कारण निजी निवेशक बिहार आने में संकोच करते हैं। राज्य की औद्योगिक नीति में निवेशकों के लिए तमाम सुविधाओं का प्रावधान किया गया है लेकिन इसका संदेश शायद अपेक्षानुसार प्रभावपूर्ण ढंग से निवेशकों तक नहीं पहुंचा। वक्त की मांग है कि एक बार पूरी रणनीति पर नजर डाली जाए और जहां भी ‘सूराख’ दिखें, उन्हें बंद करके निवेशकों को बदलते बिहार का नया चेहरा दिखाया जाए।

स्थानीय संपादकीय- बिहार