ब्लर्ब : आम लोगों तक टीबी उन्मूलन अभियान की पहुंच आम लोगों तक न होने कारण प्रदेश में हर साल इस रोग से पीडि़त लोगों की कतार हर साल बढ़ रही है।

हिमाचल की आबोहवा में स्वास्थ्य लाभ लेने के लिए यूं तो देश के हर कोने से लोग आते हैं, लेकिन विश्वस्तरीय क्षय रोग उन्मूलन अभियान के बाद भी प्रदेश में हर साल क्षय रोगी बढ़ ही रहे हैं। 500 के करीब हर वर्ष क्षय रोगी मौत का ग्रास बने रहे हैं और यह चिंता का विषय है। प्रदेश में क्षय रोग से संबंधित विभागीय आंकड़े चौंकाने वाले हैं और साल दर साल इस रोग के मरीज बढ़ते ही जा रहे हैं। बावजूद इसके हिमाचल में रोग निवारण की सफलता दर 95 फीसद है, लेकिन जितने रोगियों का इलाज होता है, अगले वर्ष उतने ही नए और सामने आ जाते हैं। ऐसे में साफ है कि स्वास्थ्य विभाग क्षय रोग के बैक्टीरिया को रोकने के प्रयास तो कर रहा है पर आम लोगों तक इस मुहिम की पूरी पकड़ नहीं बन पा रही है। इस कारण प्रदेश क्षय यानी टीबी उन्मुक्त नहीं हो पा रहा है और यहां हर साल हजारों नए रोगी निकल रहे हैं। प्रदेश में लगातार बढ़ रहे स्वास्थ्य संस्थानों के बीच इस तरह के आंकड़े आना चिंता का विषय हैं कि लोग अपनी सेहत के प्रति कितने लापरवाह हैं। सरकार ने लोगों को स्वस्थ बनाने के लिए योजनाएं तो चला रखी हैं लेकिन इस तरह के मामले आना बताता है कि इन योजनाओं का क्रियान्वयन सही ढंग से नहीं हो रहा है। हालांकि प्रदेश सरकार वर्ष 2021 तक राज्य को क्षय रोगमुक्त बनाने का दावा तो कर रही है, लेकिन हर वर्ष हजारों नए रोगियों के आने और पांच सौ के करीब रोगियों की उपचार के दौरान मौत होने का आंकड़ा साफ बता रहा है इस अभियान में कोई कोताही जरूर बरती जा रही है। हालांकि पहले की तरह अधिक दवाओं के मुकाबले अब प्रदेश में इस तरह के रोगियों को टीबी के उपचार के लिए दी जाने वाले दवाओं के बदले एक ही गोली बनाकर मरीजों को दी जा रही है, लेकिन एक गोली खाने से भी लोग परहेज कर रहे हैं। इस रोग से हिमाचल को रोगमुक्त बनाने के लिए जरूरी है कि जब किसी मरीज की इस संबंध में पुष्टि हो तो उसका उपचार भी इसी स्तर पर शुरू कर दिया जाए। संबंधित क्षेत्र के स्वास्थ्य उपकेंद्रों के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिए, ताकि कोई मरीज बिना दवा के इस तरह काल का ग्र्रास न बने।

[ स्थानीय संपादकीय : हिमाचल प्रदेश ]