----------अब महिलाओं को न सिर्फ अपने अधिकारों का अहसास है, बल्कि उसे हासिल करने की जिद भी दिखाई देती है। --------वीर बुंदेलों की धरती यदि रानी लक्ष्मी बाई की वीरता का इतिहास समेटे है तो समय-समय पर उसकी माटी का असर वहां की महिलाओं में देखने को भी मिलता है। एक हफ्ते के भीतर यहां दो अलग-अलग घटनाएं सुर्खियों में रहीं, जिसमें एक में समाज की बेडि़यों से टकराने का साहस था तो दूसरी घटना को अपनी अस्मिता से हो रहे खिलवाड़ पर एक युवती के सहज विद्रोह के रूप में देखा जा सकता है। महोबा में दहेज की मांग पर एक लड़की का ऐन तिलक के दिन शादी से इन्कार करना जहां उसके मनोबल का परिचायक है, वहीं महिला सशक्तीकरण का एक मजबूत उदाहरण भी। वहीं, इससे पहले हमीरपुर में अपने प्रेमी के शादी के दिन ही रिवाल्वर लेकर उसके सिर पर खड़ी हो जाने की घटना के पीछे का सच चाहे जो हो लेकिन, यह एक युवती के हौसले का परिचायक तो है ही। जाहिर है कि महिलाओं में अब खुद पर भरोसा करने की प्रवृत्ति बढ़ी है और इसके पीछे शिक्षा एक महत्वपूर्ण कारण है। अब महिलाओं को न सिर्फ अपने अधिकारों का अहसास है, बल्कि उसे हासिल करने की जिद भी दिखाई देती है। इस कोशिश में कुछ तरीके कानून के नजरिए में गलत भी नजर आते हैं। उत्तर प्रदेश की यह विडंबना है कि यहां महिलाओं पर होने वाले अपराधों की बड़ी संख्या है। नेशनल रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों को आधार बनाएं तो लगभग ३५ हजार ऐसे अपराध पंजीकृत हुए हैं। ऐसे में कुछ महिलाओं का साहस-दुस्साहस सुर्खियों में आ ही जाता है। स्कूलों, विश्वविद्यालयों और सड़कों पर छेड़छाड़ के प्रतिकार की घटनाएं बढ़ी हैं। बहुत दिन नहीं हुए कि इलाहाबाद में एक किशोरी ने न सिर्फ बदमाशों से खुलकर मोर्चा लिया, बल्कि उन्हें सलाखों के पीछे भी पहुंचाया। सार्थक पक्ष है कि प्रदेश में महिला साक्षरता का प्रतिशत धीरे-धीरे बढ़ रहा है और अब वह साठ फीसद के करीब पहुंच गया है। जाहिर है कि शिक्षा ने महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ा दिया है और जहां वह अपने और अपने परिवार की सुरक्षा-संरक्षा के प्रति सचेत हुई हैं, वहीं, दायरे के बाहर कदम निकालने में भी उन्हें कोई हिचक नहीं। शराब ठेकों को बंद कराने के लिए सड़क पर उतरने को उनके इसी आत्मविश्वास और बढ़ते हौसले के रूप में ही देखा जाना चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]