पोखरण में पहले परमाणु परीक्षण की वर्षगांठ के मौके पर केंद्रीय मंत्रिमंडल की ओर से की गई इस घोषणा का खास महत्व है कि स्वदेशी तकनीक आधारित दस परमाणु संयंत्र स्थापित किए जाएंगे और उनके जरिये 7000 मेगावाट बिजली हासिल की जाएगी। नि:संदेह परमाणु ऊर्जा में आत्मनिर्भरता के मामले में यह एक बड़ा फैसला है, लेकिन अच्छा होता कि ऐसा कोई निर्णय बहुत पहले ही कर लिया जाता। ऐसा इसलिए, क्योंकि अमेरिका से परमाणु करार के बाद विभिन्न देशों के सहयोग से परमाणु संयंत्र स्थापित करने की दिशा में कोई उल्लेखनीय प्रगति होती नहीं दिख रही थी। हालांकि अमेरिका के साथ हुए परमाणु करार को ऐतिहासिक करार दिया गया था, लेकिन ऐसा लगता है कि प्रमुख देशों के रुख-रवैये से परिचित होने के बाद मोदी सरकार इस नतीजे पर पहुंची कि विदेशी सहयोग से परमाणु संयंत्र लगाने से बेहतर है अपने बलबूते आगे बढ़ना। इस नतीजे पर पहुंचने के पीछे यह भी हो सकता है कि एक तो अमेरिका, फ्रांस, रूस आदि का परमाणु सहयोग महंगा सौदा साबित हो रहा था और दूसरे ये देश भारत के परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह यानी एनएसजी में भारत की सदस्यता के लिए अपेक्षित कोशिश भी नहीं कर रहे थे। एनएसजी की सदस्यता में चीन रोड़ा बना हुआ है। परमाणु संयंत्र स्थापित करने में सहयोग देने के लिए आतुर देशों से यह अपेक्षित था कि वे चीन को भारत की राह में अड़ंगा न लगाने के लिए मनाएंगे, लेकिन शायद वे खानापूरी करने तक ही सीमित हैं। हैरत नहीं कि भारत ने इसी कारण चीन प्रायोजित वन बेल्ट-वन रोड सम्मेलन का बहिष्कार करने के बाद यह संकेत दिया कि वह रूस के साथ प्रस्तावित परमाणु समझौते को लेकर बहुत इच्छुक नहीं।
स्वदेशी तकनीक आधारित दस परमाणु संयंत्र स्थापित करने की घोषणा यही बताती है कि भारत परमाणु ऊर्जा के मामले में दूसरे देशों की मदद का मोहताज नहीं। यदि वास्तव में ऐसा है तो फिर इतने दिनों तक अन्य देशों का मुंह क्यों ताका गया? फिलहाल यह स्पष्ट नहीं कि दस परमाणु संयंत्र कब और कहां बनेंगे? कहीं सरकार की इस घोषणा का मकसद बड़े देशों को कोई संदेश देना भर तो नहीं? जो भी हो, परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थापित करने में भारी भरकम खर्च के साथ ही उनसे जुड़े जोखिम की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। यह सही है कि परमाणु ऊर्जा स्वच्छ ऊर्जा के मकसद को पूरा करती है, लेकिन आज जब सभी प्रमुख देश परमाणु ऊर्जा की दिशा में मुश्किल से ही आगे बढ़ते दिख रहे हैं तब फिर भारत को भी यह देखना चाहिए कि इस क्षेत्र में कितना आगे बढ़ा जाए? वर्तमान में भारत परमाणु ऊर्जा से 6780 मेगावाट बिजली हासिल करता है और 6700 मेगावाट क्षमता पर काम चल रहा है। लक्ष्य यह है कि 2030 तक परमाणु ऊर्जा से 35 हजार मेगावाट और 2050 तक 60 हजार मेगावाट बिजली हासिल की जाए। चूंकि ऊर्जा जरूरत बढ़ती जा रही है इसलिए लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना ही होगा, लेकिन बेहतर यही है कि ऊर्जा के अन्य विकल्पों पर भी महारत हासिल की जाए। इसलिए और भी, क्योंकि भारत इसके प्रति प्रतिबद्धता जता चुका है कि वह स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में विश्व का अगुआ बनेगा।

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