-----यह एक मौका है कि नगर निकायों में संपत्ति के दाखिल खारिज में होने वाली गड़बडि़यों का पता लगाकर उन्हें कम किया जा सके। -----नेहरू भवन यानी प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय इन दिनों चर्चा में है। इस भवन के मालिकाना हक को लेकर विवाद गर्म है। दरअसल, कांग्रेस मुख्यालय के इस भवन को रामस्वरूप अग्रवाल और पद्मावती अग्रवाल ने केंद्र सरकार के पुनर्वास मंत्रालय से 29 अप्रैल, 1961 को नीलामी में खरीदा था लेकिन, इस संपत्ति की केयर टेकर के रूप में कांग्रेस नेता मोहसिना किदवई का नाम वर्ष 1986 में दर्ज हो गया और फिर वर्ष २००२ में पूरी तरह से संपत्ति उनके ही नाम हो गई। प्राथमिक जांच-पड़ताल में तो यही आ रहा है कि नगर निगम के तत्कालीन कर निरीक्षक ने बिना किसी साक्ष्य, दस्तावेजों व नोटिंग के ही संपत्ति के मालिक रहे रामस्वरूप अग्रवाल और पद्मावती अग्रवाल का नाम हटाया था। इन असली मालिकों के पौत्र मनीष अग्रवाल ने मूल पत्रावली पेश करके अपनी संपत्ति की सुध ली तो हकीकत से पर्दा उठा। यह महज एक घटना नहीं, बल्कि नगर निगमों में पूरी तरह व्याप्त निरंकुश और लापरवाह काम-काज की फकत एक बानगी मात्र है। केवल कलम चलने की देर होती है और पीडि़त वर्षो तक कोर्ट कचहरी के चक्कर काटता रहता है। ऐसे न जाने कितने उदाहरण मिल जाएंगे, पर ऐसे अपराधियों का बाल भी बांका नहीं होता। हालांकि इस संपत्ति का मालिकाना हक मोहसिना किदवई के नाम दर्ज हो जाने की जो फौरी हकीकत सामने आ रही है, वह इकतरफा है। इसमें अभी और जांच पड़ताल होनी बाकी है क्योंकि मालिकाना हक बदले जाने का अभी और कोई दस्तावेज सामने नहीं आ पाया है। नगर निगम का भी कहना है कि मूल पत्रावली आने के बाद कांग्रेस से जवाब देने के लिए नोटिस जारी किया जाएगा। फिलहाल कांग्रेस की तरफ से अभी तक कोई जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई है। बहरहाल, भवन प्रदेश में कांग्रेस की पहचान से जुड़ा हुआ है। मामला उच्च स्तर का होने के कारण हो सकता है ज्यादा कोर्ट कचहरी में फंसने के बजाय बाहर ही सुलझ भी जाए लेकिन, इसकी हकीकत जरूर सबके सामने आनी चाहिए। यह एक मौका है कि नगर निकायों में संपत्ति के दाखिल खारिज में होने वाली गड़बडि़यों का पता लगाकर उन्हें कम किया जा सके।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तर प्रदेश ]