हाईलाइटर
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वित्तीय वर्ष के समाप्त होने में मात्र बाइस दिन शेष हैं, लेकिन नामांकन के विरुद्ध अभी तक साठ फीसद छात्र-छात्राओं को साइकिल नहीं मिल पाई है।
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केंद्र व राज्य सरकार विभिन्न योजनाओं की शुरुआत करते हुए आमलोगों को राहत देने का काम करती है। शिक्षा के विकास के लिए भी कई केंद्रीय व राज्य योजनाएं संचालित हो रही हैं। लेकिन इन योजनाओं को धरातल पर उतारने के लिए जिम्मेदार अफसरों की लापरवाही और उदासीनता के कारण योजनाएं वहां तक नहीं पहुंच पातीं। कक्षा आठ के सामान्य वर्ग के छात्र-छात्राओं को निश्शुल्क साइकिलें उपलब्ध कराने में कुछ ऐसा ही हुआ। स्थिति यह है कि वित्तीय वर्ष के समाप्त होने में मात्र बाइस दिन शेष रह गए हैं, लेकिन राज्य में नामांकन के विरुद्ध अभी तक साठ फीसद छात्र-छात्राओं को साइकिल नहीं मिल पाई है। पलामू और गढ़वा में तो एक भी छात्र-छात्रा को साइकिल नहीं मिली। यह एक तरह से आपराधिक लापरवाही है। अन्य जिलों की भी स्थिति अच्छी नहीं है। खूंटी और लोहरदगा में सौ विद्यार्थियों को भी साइकिल नहीं मिल पाना दुखद ही कहा जा सकता है। प्रमंडलों में तैनात क्षेत्रीय शिक्षा उपनिदेशकों की मुख्य जिम्मेदारी अपने-अपने जिलों में योजनाओं की निगरानी करना है। यदि जिलों की ऐसी स्थिति है तो जिला शिक्षा पदाधिकारियों के अलावा वे भी सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं। राज्य सरकार को ऐसे पदाधिकारियों को चिह्नित कर उनसे जवाबदेही वापस लेनी चाहिए। साथ ही दूसरे पदाधिकारियों को मौका देते हुए इसकी जिम्मेदारी देनी चाहिए जिन्हें अपनी काबिलियत दिखाने का मौका नहीं मिला है। शिक्षा सचिव ने योजना की इस स्थिति पर चिंता प्रकट करते हुए उपायुक्तों को पत्र लिखा है। अब उपायुक्त की भी जिम्मेदारी है कि वे दोषी पदाधिकारियों और कर्मियों की पहचान कर उनके विरुद्ध कार्रवाई की अनुशंसा करें। शिक्षा में सिर्फ साइकिल वितरण में ही यह लापरवाही सामने नहीं आई है। छात्राओं को पोशाक वितरण, मुख्यमंत्री विद्यालक्ष्मी योजना सहित कई अन्य योजनाओं में भी ऐसा ही हुआ है। विभाग की ओर से बार-बार योजनाओं की प्रगति को लेकर समीक्षा की जाती है, पदाधिकारियों को निर्देश दिए जाते हैं, इसके बावजूद स्थिति जस की तस रहती है। अभी मैट्रिक व इंटरमीडिएट की परीक्षाओं में हुई कदाचारिता में जिला शिक्षा पदाधिकारियों के ऊपर भी उंगली उठ रही है। जैक और विभाग के सख्त निर्देश के बावजूद ऐसे मामले आ रहे हैं तो जिला शिक्षा पदाधिकारी भी अपनी जवाबदेही से भाग नहीं सकते।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]