दिल्ली में मानसून से पूर्व नालों की सफाई न हो पाना चिंता का विषय है। यह स्थिति संकेत देती है कि विगत वर्षो की तरह ही इस बार भी बरसात के दिनों में जलभराव और उसके कारण लगने वाले जाम से छुटकारा मिलने के आसार कम ही हैं। ऐसे में नालों की सफाई न होने को लेकर उपराज्यपाल अनिल बैजल का चिंतित होना लाजमी है। स्थिति की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि नालों की सफाई के मौजूदा हालात को देखते हुए दिल्ली सरकार को इसकी समयसीमा 7 जून से एक सप्ताह के लिए बढ़ानी पड़ी है।

सरकार का दावा है कि इस अवधि तक नालों की सफाई का काम पूरा हो जाएगा, लेकिन पुराने अनुभवों को देखते हुए यह कहना जरा मुश्किल है कि जमीन पर यह कार्य कितना पूरा हो सकेगा। दिल्ली में नालों की सफाई का कार्य लोक निर्माण विभाग, सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग, तीनों नगर निगमों और नई दिल्ली नगरपालिका परिषद (एनडीएमसी) के पास है। ऐसे में इन सभी सरकारी एजेंसियों के प्रयास के बिना सभी नालों से गाद हटाना संभव नहीं है।1हर साल मानसून से पूर्व नालों की सफाई एक अनिवार्य कार्य है, जो वर्षा जल को नालों के जरिये नदियों तक पहुंचाने में मदद करता है। नालों में गाद न होने से उनमें पानी नहीं भरता और सड़कों पर जलभराव की स्थिति पैदा नहीं होती।

मानसून के मद्देनजर तैयारियों को लेकर बुलाई गई समीक्षा बैठक में उपराज्यपाल ने उच्चाधिकारियों को नालों की सफाई के संबंध में निर्देश देने के साथ ही गाद निकालने के लिए बनाई गई समन्वय समिति के कार्य की प्रगति की नियमित निगरानी के भी निर्देश दिए हैं। यह उचित भी है, क्योंकि हर साल सरकारी एजेंसियां नालों की सफाई का दावा करती हैं, जबकि हकीकत ये नहीं होती, जिसका दुष्परिणाम जलभराव और जाम के रूप में सामने आता है। जलभराव से गंदगी भी होती है, जिसके कारण बरसात के दिनों में विभिन्न बीमारियां फैलती हैं। दिल्ली सरकार की तरह ही तीनों नगर निगमों और एनडीएमसी के उच्चाधिकारियों को कार्य की प्रगति की निगरानी करनी चाहिए, ताकि कागज में ही सफाई कर इतिश्री न हो जाए।

(स्थानीय संपादकीय दिल्ली)