यह विडंबना ही है कि जीवदायिनी के गोद में यात्री और पर्यटक जान गंवा रहे हैं। सरकार और प्रशासन की अनदेखी से हर साल हादसे बढ़ रहे हैं। जल्द समाधान नहीं सोचा गया तो इसके परिणाम घातक होंगे।
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गंगा को यूं तो जीवनदायिनी माना जाता है, लेकिन प्रदेश में लगातार गंगा के घाट लापरवाही के चलते मौत का ठिकाना बन रहे हैं। देवभूमि में गंगा घाटों पर सुरक्षित स्नान की व्यवस्था न होना चिंताजनक है। यह चिंता हर साल आंकड़ों में हो रहे इजाफे के साथ बड़ी हो रही है। उद्गम स्थल से लेकर हरिद्वार तक गंगा के घाटों पर हर साल बड़ी संख्या में लोग अपनी जान गंवा देते हैं। इसके पीछे कहीं न कहीं यात्रियों की लापरवाही भी होती है, लेकिन सवाल प्रशासन और सरकार की व्यवस्थाओं पर उठना भी लाजिमी है। कुछ घाटों को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश गंगा घाट ऐसे हैं, जहां स्नान और सुरक्षा को लेकर पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। गंगा के अधिकांश घाट सुरक्षा इंतजाम नहीं होने के कारण खतरनाक साबित हो रहे हैं। घाटों पर पानी का बहाव शांत नजर आता है, लेकिन ऐसा होता नहीं। अधिकांश यात्री शांत बहाव को देखकर गंगा में उतरते हैं और तेज बहाव की चपेट में आकर जान गंवा बैठते हैं। शायद ही किसी घाट पर चेतावनी या सुरक्षा को लेकर कर्मी तैनात किए गए हों। शिवपुरी से ऋषिकेश तक के बीच स्थित घाटों पर सर्वाधिक हादसे सामने आते रहे हैं। इसके बावजूद आज तक सरकार की नींद नहीं टूटी। ये तमाम घाट कच्चे हैं। सुरक्षा के लिए न तो इन्हें पक्का किया गया और न ही सुरक्षा चेन आदि लगाई गई। सरकार घाटों पर सुरक्षा इंतजाम नहीं कर पाने के साथ ही गंगा के घाटों पर संचालित किए जा रहे कैंपों पर भी नजर नहीं रख पा रही है। इन हादसों के पीछे कई मामलों में ये कैंप भी जिम्मेदार होते हैं। कैंपों में छुïिट्टयां बिताने आने वाले पर्यटक बिना जानकारी के गंगा के घाटों पर नहाने निकल जाते हैं और हादसों का शिकार बनते हैं। कैंप संचालक यदि जिम्मेदारी से काम करें तो इन पर्यटकों को खतरनाक घाटों के बारे में शुरू में ही जानकारी देकर भी हादसों को कम किया जा सकता है। बिना प्रशिक्षित तैराकों और गुणवत्ता वाली लाइफ जैकेटों के पर्यटकों को नहाने के लिए नहीं छोड़ा जाना चाहिए। ऐसे में सरकार को इस ओर भी गंभीरता से सोचने की जरूरत है। उत्तराखंड की आर्थिकी का बड़ा सहारा धर्म और पर्यटन हैं। ऐसे में सरकार को सुरक्षित और बेहतर यात्रा और गंगा स्नान के लिए ठोस व्यवस्थाएं करनी होंगी। अगर हादसे लगातार होते रहे तो इस ओर से भी लोगों का मोह भंग हो सकता है।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]