भारतीय जनता पार्टी की कार्यकारिणी की बैठक का मुख्य मुद्दा भी ब्यूरोक्रेसी पर अंकुश न होना रहा। जब से सरकार बनी है तब से भाजपा के कार्यकर्ता ही नहीं आम लोग भी अफसरों पर यह आरोप लगाते रहे हैं कि वह जनता की समस्याओं और शिकायतों पर ध्यान नहीं देते। हो सकता है कि कुछ लोग निहित स्वार्थवश ऐसा आरोप लगा रहे हों, लेकिन जब सब तरफ से यही आवाज उठ रही हो तो उसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। अभी हाल ही में भाजपा के कुछ विधायक अफसरों की कार्यप्रणाली पर अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए मुख्यमंत्री तक को कठघरे में खड़े कर चुके हैं और स्थिति को संभालने के लिए केंद्रीय नेतृत्व को हस्तक्षेप करना पड़ा। इसमें दो राय नहीं कि मुख्यमंत्री मनोहर लाल की छवि ईमानदार और सहज-सरल व्यक्ति की है। एक नेता के रूप में यह छवि अच्छी है लेकिन एक कुशल प्रशासक के रूप में तो उन्हें सख्त दिखना ही होगा। जहां जनता में मुख्यमंत्री के नरम दिल होने का संदेश जाना चाहिए, वहीं ब्यूरोक्रेसी में उनकी सख्त छवि कायम होनी चाहिए। लेकिन अभी जो संदेश जा रहा है कि मुख्यमंत्री सिर्फ अधिकारियों की बात ही मानते हैं और अधिकारी उन्हें गुमराह करते हैं। हो सकता है यह बात गलत हो या उतनी न हो जितनी बढ़ा चढ़ाकर कही जा रही है, पर सरकार को, मुख्यमंत्री को यह समझ लेना चाहिए कि सत्य वही होता है जो आम जनता मानती है। सत्य तक पहुंचने के दो तरीके होते हैं या तो उसकी गूढ़ विवेचना की जाए या तो उसका साधारणीकरण किया जाए। यदि हम साधारणीकरण के जरिये सत्य तक पहुंचने की कोशिश करते हैं। इस तरह जन साधारण जो निष्कर्ष निकाल रहा है, वही सत्य है, यह स्वीकार करना होगा। मुख्यमंत्री ने प्रदेश के विकास के लिए तमाम घोषणाएं की हैं। वह सभी 90 विधानसभा क्षेत्रों का दौरा कर चुके हैं। उन्होंने उन क्षेत्रों के विकास के लिए भी तमाम घोषणाएं की हैं। लेकिन इनमें से ज्यादातर घोषणाएं अभी तक फाइलों से आगे नहीं बढ़ सकी हैं। जाहिर है कि इसके लिए अधिकारी ही जिम्मेदार हैं। सरकार की विकास संबंधी योजनाओं के क्रियान्वयन में अधिकारियों की रुचि न होना दुखद है और विकास में अवरोधक है। इसलिए मुख्यमंत्री को ब्यूरोक्रेसी को कसना ही होगा।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]