प्रदेश में किसान आंदोलन एक बार फिर जोर पकड़ने जा रहा है। यह एक तरह से मध्यप्रदेश से शुरू हुए आंदोलन का विस्तार है। आंदोलन के कारण चाहे जो हों, पर यह तो तय है कि ऐसी परिस्थितियां केंद्र और राज्य में सत्तारूढ़ पार्टी से उम्मीद की वजह से ज्यादा मजबूत हुई हैं। आम जनता, विशेष रूप से किसानों को सरकार से बहुत आशा है। इस दिशा में प्रयास भी हो रहे हैं। सब्सिडी की राशि सीधे किसानों के बैंक खाते में पहुंचने लगी है। राष्ट्रीय किसान आयोग के अध्यक्ष प्रोफेसर एमएस स्वामीनाथन भी मानते हैं कि बेहतर बीज की उपलब्धता बढ़ी है। कृषि और सिंचाई क्षेत्र में भी बढ़ोतरी हुई है। इसके साथ ही यह भी सच्चाई है कि प्रदेश के किसानों पर सहकारी बैंकों का ही साढ़े छह हजार करोड़ बकाया है। प्रदेश के 16.5 लाख किसानों में 15 लाख कर्ज से दबे हैं। इसमें भी दो राय नहीं कि कर्जमाफी किसी भी तरह समस्या का समाधान नहीं है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व वाली पिछली सरकार तीन साल पहले ही किसानों का 27 हजार करोड़ के कर्ज माफ कर चुकी है। फिर भी 30 हजार करोड़ रुपये से अधिक का समग्र्र कर्ज उनपर है। बैंकों के बकाएदार उद्योगपतियों और कारोबारियों से किसानों की तुलना भी की जा रही है। यहीं पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है। क्या किसान लाभ में हैं? क्या उन्हें लागत मूल्य और श्रम के हिसाब से मुनाफा हो रहा है? स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट में इसकी विस्तृत पड़ताल है। समस्या जटिल है और जल्दबाजी में समाधान संभव नहीं है। ईमानदार कोशिश की जरूरत है। कोई इनकार नहीं कर सकता कि हालात लंबे समय से चली आ रही अनदेखी के कारण खराब हुए हैं। इससे आक्रोश है और अब प्रदेश में भारतीय किसान यूनियन ने आठ स्थानों पर हाईवे पर जाम लगाने की घोषणा की है। इससे निपटने के अद्र्धसैनिक और पुलिस बल के जवान तैनात कर दिए हैं। हालांकि सीएम मनोहर लाल के नेतृत्व में हुई मंत्रिमंडल समूह की बैठक में किसानों के संदर्भ में सकारात्मक चर्चा भी हुई है। इसलिए उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार संयम और संवाद से समस्या का समाधान निकालने में सफल रहेगी। टकराव से सबका नुकसान होगा और प्रदेश का विकास बाधित होगा।

[  स्थानीय संपादकीय : हरियाणा  ]