उत्तराखंड की तरक्की से जुड़े आंकड़े सुकून देते हैं, लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू भी है। पलायन, शिक्षा एवं रोजगार समेत तमाम मसले अभी अनसुलझे हैं।
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सवा लाख से अधिक की प्रति व्यक्ति आय वाले उत्तराखंड के विकास की दर 27 फीसद से अधिक है। राज्य सकल घरेलू उत्पाद के मामले में भी वह राष्ट्रीय औसत से कहीं आगे हैं। गुजरे साढ़े 16 सालों में तरक्की के इन आंकड़ों पर कोई भी इतरा सकता है। लेकिन, तस्वीर का दूसरा पहलू सोचने पर विवश करता है। उत्तराखंड राज्य की मांग के पीछे जो मसले थे, वे आज भी अनसुलझे हैं। खासकर, पर्वतीय इलाकों में शिक्षा व रोजगार के सवाल। बेहतर शिक्षा व रोजगार के अभाव में पहाड़ के गांवों से लगातार पलायन हो रहा है। राज्य गठन के बाद इसमें आई तेजी का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि अब तक तीन हजार से अधिक गांव खाली हो चुके हैं। अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से सटे सूबे के लिए यह स्थिति किसी भी दशा में उचित नहीं कही जा सकती। इसके लिए सरकारों की अनदेखी ही जिम्मेदार है, जो मूलभूत सुविधाओं के विस्तार के साथ ही रोजगार के अवसर सृजित कराने की दिशा में ठोस कदम नहीं उठा पाई है। रोजगार की ही बात करें तो इसके लिए 2008 में उद्योगों को पहाड़ चढ़ाने को हिल पॉलिसी जरूर बनी, लेकिन यह आज तक परवान नहीं चढ़ पाई। यही नहीं, न तो खेती-किसानी व बागवानी पर फोकस किया गया और न पर्यटन विकास पर। इन क्षेत्रों की अनदेखी का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि राज्य में एक लाख हेक्टेयर से अधिक कृषि योग्य भूमि बंजर में तब्दील हो गई है। हर साल ही बड़े पैमाने पर माल्टा समेत अन्य फल यूं ही बर्बाद हो रहे हैं। उत्तराखंड का सेब आज भी हिमाचल के नाम से बिक रहा है। पर्यटन के क्षेत्र में इन 16 सालों में एक भी नया पर्यटक स्थल विकसित नहीं हो पाया और न ग्राम पर्यटन की योजना को ही पंख लग पाए। ऐसा ही हाल शिक्षा, स्वास्थ्य आदि से जुड़े मसलों का भी है। इस सबको देखते हुए द एसोसिएटेड चैंबर्स आफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री आफ इंडिया (एसोचैम) व थॉट आर्बिटेज रिसर्च इंस्टीट्यूट (टारी) की ओर से राज्य सरकार को सौंपी सतत कार्ययोजना एक मार्गदर्शक की भूमिका अदा करेगी। इसमें औद्योगिक विकास की गति तेज करने के साथ ही पलायन रोकने का रोडमैप भी शामिल है। साथ ही शिक्षा, स्वास्थ्य, क्षमता निर्माण, जल प्रबंधन, कृषि, खाद्य प्रसंस्करण आदि पर भी फोकस किया गया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि मौजूदा राज्य सरकार सूबे को सरसब्ज बनाने की दिशा में एसोचैम-टारी की संस्तुतियों पर भी मंथन कर पूरी गंभीरता से कदम उठाएगी।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]