हाईलाइटर
जिस तरह लखनऊ में गोमती को बचाने-संवारने यूपी सरकार शिद्दत से जुट गई है, उसी तरह की मुहिम स्वर्णरेखा को बचाने के लिए शुरू की जानी चाहिए।
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झारखंड की जीवन रेखा स्वर्णरेखा नदी आज अस्तित्व पर गंभीर संकट से जूझ रही है। नाले के रूप में तब्दील हो चुकी इस नदी का पानी जहर के समान हो चुका है। इससे लोगों की बात तो दूर, जलीय जीव-जंतुओं पर भी संकट है। इस दयनीय स्थिति के लिए नदी का क्या दोष? तो मातृस्वरूपा नदी की इस दुर्दशा के लिए किसे कसूरवार ठहराया जाए? कारण जो भी हो। अब समय सिर्फ कारणों का पोस्टमार्टम करने भर का नहीं है बल्कि स्वर्णरेखा को बचाने के लिए ठोस पहल करने की जरूरत है। स्वर्णरेखा को बचाने और संवारने को लेकर बयानबाजी और कोरी घोषणाओं पर अब विराम लगना चाहिए।
उत्तरप्रदेश में योगी सरकार जिस तरह से लखनऊ में गोमती को बचाने-संवारने के काम में शिद्दत से जुट गई है, उसी तरह की मुहिम तत्काल झारखंड में भी स्वर्णरेखा को बचाने के लिए शुरू की जानी चाहिए। राज्य के बड़े भू-भाग के लोगों के पेयजल का मुख्य स्रोत स्वर्णरेखा ही है। ऐसे में प्रदूषित और नाले में तब्दील हो चुकी यह नदी कब हमारी प्यास बुझा पाएगी? यह चिंता व चिंतन का विषय होना चाहिए। स्वर्णरेखा को बचाने की दिशा में सभी को आगे आना होगा। इसमें गिरनेवाले सीवेज को तत्काल प्रभाव से बंद करने की कवायद की जानी चाहिए। अविरल जल का प्रवाह बना रहे, इसके लिए भी कदम उठाए जाने की आवश्यकता है। इसके संरक्षण व संवद्र्धन के लिए समय के अनुरूप जरूरी नियम-कानून भी बनाए जाने चाहिए। नदी को बचाने की मुहिम तभी सफल हो सकेगी जब इसमें जन भागीदारी रहे। आम जनता को भी इससे जोडऩा होगा। लोगों को जागरूक करना होगा कि कूड़े-कचरे से नदी को पाटने का मतलब है अपनी समृद्ध विरासत को इतिहास बनाने की कवायद। घर में पूजा के बाद निष्प्रयोज्य सामग्री को नदी में डालने की परंपरा पर विराम लगना चाहिए। कई अन्य तरह से नदी को दूषित-प्रदूषित करने पर भी अंकुश जरूरी है। सरकार नदी की सफाई करा इसके जिंदा स्वरूप को बचाए रखने की योजना पर काम करे। पर्यटन के नजरिए से भी नदी पर ध्यान दिया जाए। इसके महत्व व बचाने की मुहिम की अहमियत को बताने के लिए सरकारी-गैर सरकारी स्तर पर जागरूकता अभियान चलाया जाए। गंगा-यमुना की तर्ज पर स्वर्णरेखा को भी जीवित व्यक्ति का दर्जा दिलाने का प्रयास हो। यदि ऐसा हुआ तो वाकई अभी नाला की तरह दिख रही स्वर्णरेखा को नदी का मूल स्वरूप पाने में देर नहीं लगेगी।

[  स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]