पंजाब के सरकारी अस्पतालों की कार्यप्रणाली, लचर व्यवस्था और स्टाफ की लापरवाही के नमूने आए दिन सामने आते रहते हैं, लेकिन इस बार तो हद ही हो गई है। नेशनल एड्स कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (नाको) की ओर से आरटीआइ के जवाब में दी गई जानकारी के अनुसार अस्पताल प्रबंधन व ब्लड बैंकों की लापरवाही के कारण पंजाब में अप्रैल 2015 से अप्रैल 2016 तक विभिन्न सरकारी अस्पतालों में 88 मरीजों को एचआइवी संक्रमित ब्लड चढ़ा दिया गया है। यह लापरवाही तो कदाचित जानलेवा साबित हो सकती है। आखिर कौन नहीं जानता है कि यदि यह एचआइवी वायरस एड्स में बदल गया, तो इन मरीजों की मौत भी हो सकती है। आखिर कोई किसी की जिंदगी के साथ कैसे खिलवाड़ कर सकता है? दुर्भाग्यवश प्रदेश में लगातार ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जो न सिर्फ मरीजों पर भारी पड़ रहे हैं, अपितु सरकारी अस्पतालों की किरकिरी का भी सबब बन रहे हैं। मरीजों को एचआइवी संक्रमित ब्लड चढ़ाने के मामले में महज अस्पतालों पर ठीकरा फोड़कर इससे पल्ला नहीं झाड़ा जा सकता है। यह बेहद गंभीर मामला है और सेहत महकमा भी इसके लिए कम जिम्मेदार नहीं है। आखिर प्रदेश के ब्लड बैंकों पर किस प्रकार की निगरानी रखी जा रही है? नाको की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि प्रदेश के कई निजी ब्लड बैंक निर्धारित क्षमता से ज्यादा रक्त ले रहे हैं और कई बार रक्त खराब भी हो रहा है। प्रदेश में जगह-जगह ब्लड बैंक खुले जरूर हैं, लेकिन इसके बावजूद मरीजों व उनके परिजनों को आवश्यकता पडऩे पर ब्लड के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। इसके अतिरिक्त ब्लड बैंकों के लाइसेंस की जांच व उनके नवीनीकरण पर भी ठीक से ध्यान नहीं दिया जा रहा। हर बार स्वास्थ्य विभाग तभी जागता है, जब पानी सिर से ऊपर चला जाता है। इस मामले में भी यही बात दोहराई गई। मामला सामने आने के बाद सेहत विभाग ने ब्लड बैंकों के नॉर्म्स चेक करने,उनके लाइसेंस की जांच करने व नवीनीकरण की प्रक्रिया जल्द पूरी करने के आदेश दिए हैं, लेकिन इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि मामला ठंडा पडऩे के साथ ही सेहत महकमे की सक्रियता भी शिथिल हो जाएगी। सेहत विभाग को इस घटना से सबक सीखना चाहिए और ब्लड बैंकों की कड़ी निगरानी की नियमित तौर पर व्यवस्था की जानी चाहिए। साथ ही इस मामले की गहराई से जांच होनी चाहिए। इस लापरवाही में जो भी दोषी पाया जाए उसके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई होनी ही चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय : पंजाब ]