अब तक मेडिकल कॉलेजों में नामांकन के लिए होने वाली संयुक्त प्रवेश परीक्षा में 'मुन्ना भाई एबीबीएस' की तरह परीक्षा में बैठने वाले धरे जाते थे। परंतु, पश्चिम बंगाल में बिना डिग्री व पढ़ाई के ही बड़े-बड़े अस्पतालों में फर्जी डिग्र्री के माध्यम से चिकित्सा करने वाले डॉक्टरों गिरफ्तारी शुरू हुई तो लोग हैरान हो गए। एक के बाद एक ऐसे कई फर्जी डॉक्टरों की गिरफ्तारी हुई जो कभी मेडिकल कॉलेज गए ही नहीं। यहां तक कि राष्ट्रपति के हाथों भी पुरस्कार प्राप्त कर लिया। क्या यह गोरखधंधा यूं ही चल रहा था? पिछले 15 दिनों से एक के बाद एक फर्जी डॉक्टरों की गिरफ्तारी हो रही है। यही नहीं पूछताछ में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आ रहे हैं। नेता-मंत्रियों व स्वास्थ्य विभाग के उच्च अधिकारियों की छत्रछाया में फर्जी डॉक्टर का पूरा गिरोह सक्रिय है। पश्चिम बंगाल मेडिकल काउंसिल के अध्यक्ष डॉक्टर निर्मल मांझी ने खुद कहा है कि राज्य में 550 से अधिक फर्जी डॉक्टर हैं। परंतु, सवाल यह उठता है कि फर्जी चिकित्सक के धंधे को फलने-फूलने के लिए कौन जिम्मेवार है? फर्जी दस्तावेजों के बल पर बड़े-बड़े अस्पतालों में दशकों से वे कैसे इलाज कर रहे थे? यहां तक कि सरकारी अस्पताल में भी नौकरी कर रहे थे। ऐसा लग रहा है कि इस गिरोह के पीछे बहुत बड़ा रैकेट काम कर रहा है। क्योंकि, ऐसे फर्जी डॉक्टर कई प्रभावशाली लोगों के साथ अपनी तस्वीरों को सोशल नेटवर्किंग साइटों पर पोस्ट करते हैं ताकि खुद को भी प्रभावशाली दिखा सकें। जांच में यह भी खुलासा हो रहा है कि ब्रिटेन, बांग्लादेश के मेडिकल कॉलेजों के नाम बाले फर्जी डिग्र्री अपने-अपने चेंबर में टांग कर लोगों का इलाज कर रहे थे। पिछले दिनों गिरफ्तार नरेन पांडे ने तो अपने जाली रजिस्ट्रेशन के बल पर एक गैरसरकारी बैंक से एक करोड़ रुपये के ऋण के लिए आवेदन किया था। उक्त बैंक ने जब उनके रजिस्ट्रेशन नंबर की सत्यता जांचने के लिए स्वास्थ्य विभाग से संपर्क किया तो स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने बिना जांच के ही उक्त बैंक को नरेन को ऋण देने के लिए 'नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट' दे दिया था। यह तो एक फर्जी डॉक्टर की कहानी है। ऐसे कई और डॉक्टर धरे गए हैं। ऐसे डॉक्टरों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए ताकि लोगों की जिंदगी से फिर कोई खिलवाड़ न कर सकें। वहीं जिन के संरक्षण में ये लोग फल-फुल रहे थे उन्हें भी सजा मिलनी चाहिए।
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(हाईलाइटर::: एक के बाद एक ऐसे कई फर्जी डॉक्टरों की गिरफ्तारी हुई जो कभी मेडिकल कॉलेज गए ही नहीं। यहां तक कि राष्ट्रपति के हाथों भी पुरस्कार प्राप्त कर लिया। क्या यह गोरखधंधा यूं ही चल रहा था?)

[ स्थानीय संपादकीय : पश्चिम बंगाल ]