जून भर तरसाने के बाद मानसून जुलाई के शुरू में मेहरबान हुआ तो उम्मीद जगी थी कि खेती-बारी के लिए अनुकूल हालात बनेंगे लेकिन दो-चार दिन झलक दिखलाकर मानसून गुम हो गया। इससे किसानों के लिए संकट गहरा गया है। यह धान की रोपाई का सीजन है। इस समय किसानों को खेतों में झमाझम पानी चाहिए। इसके विपरीत 35 डिग्री सेंटीग्रेड से भी ऊंचा तापमान खेतों की अंदरूनी नमी भी सुखा रहा है। प्राचीन कहावत है कि का वर्षा जब कृषी सुखानी। यानी खेती के लिए बारिश तभी उपयोगी है, जब वह जरूरत के वक्त हो। यदि जुलाई में जमकर बारिश न हुई तो धान की फसल के लिए गंभीर संकट खड़ा हो जाएगा। संभव है कि अगस्त में अच्छी बारिश हो। उससे सीजन में कुल बारिश का आंकड़ा तो ठीक दिखने लगेगा लेकिन खेती-किसानी बर्बाद हो चुकी होगी। कृषि और आपदा प्रबंधन विभागों को अपने कान खड़े कर लेने चाहिए। दरअसल, किसान दो तरह के संकट से घिरने वाले हैं। वे राज्य के कुछ हिस्सों में बाढ़ से बर्बाद होंगे जबकि बाकी हिस्सों में सूखा से। राज्य सरकार को पहले ही इन हालात से निपटने की मजबूत तैयारी कर लेनी चाहिए ताकि संकट गहराने ही किसानों को राहत पहुंचाई जा सके। किसानों का सर्वस्व उनकी कृषि पर ही निर्भर करता है। फसल नष्ट हो जाने पर किसानों की कमर टूट जाती है। सूखाग्रस्त इलाकों में किसानों को धान की उन लेट प्रजातियों का बीज पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध कराया जाना चाहिए जो रोपाई के बजाय सीधे बो दिया जाता है। इससे किसानों के खेत परती नहीं छूटेंगे। इसके साथ ही किसानों को धान के अलावा अन्य वैकल्पिक फसलों का भी बीज उपलब्ध कराया जाए ताकि जिन खेतों में किसी भी तरह धान की खेती संभव नहीं, वे खेत भी खाली न छूट जाएं। जहां तक बाढ़ वाले इलाकों का सवाल है, किसानों की मदद के लिए वित्तीय सहायता से इतर विकल्प नगण्य होते हैं। इन क्षेत्रों में ग्रामीणों और उनके मवेशियों को जलप्लावन से बाहर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने, उनके भोजन-इलाज तथा सर्पदंश से बचाव की मुकम्मल व्यवस्था सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर की जानी चाहिए। चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग को सुनिश्चित करना चाहिए कि हर स्तर के अस्पतालों में स्नेक एंटी वेनम पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध रहे।
:::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::::
बिहार की त्रासदी है कि यहां बाढ़ और सूखा एक साथ धावा बोलते हैं। किसानों के लिए यह बेहद कठिन समय होता है। राज्य सरकार को समय रहते ऐसे मुकम्मल इंतजाम कर लेने चाहिए ताकि सूखा और बाढ़ पीडि़त किसानों को कम से कम नुकसान और कष्ट हो।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]