प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आदेश के बाद प्रदेश में भी सरकारी वाहनों से लालबत्ती तो हटा ली गई लेकिन सरकार में बैठे कुछ अधिकारी अभी भी वीआइपी संस्कृति का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। आबकारी विभाग अपनी गाड़ियों को अलग पहचान देना चाहता है ताकि उन्हें विशेष पहचान मिल सके। इसके लिए अलग रंग व विशेष लाइट लगाने की तैयारी है। ताजा घटना चंडीगढ़ मुख्यालय में तैनात तृतीय व चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी की विशेष बस पास सेवा के लाभ उठाने का है। बरसों से चल रही परंपरा के नाम पर सुविधा के बंदरबांट का कोई विरोध नहीं कर रहा था। न कोई नियम और न कोई नीति लेकिन अधिकारी अपने चहेतों को निश्शुल्क बस सेवा का पास बांट रहे थे। मामला मीडिया में उछलने व विपक्ष के हंगामे के बाद प्रदेश सरकार ने यह सुविधा अब वापस ले ली लेकिन अफसरों पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। चूंकि यह मामला उजागर हो गया और इसीलिए अब सुविधा वापस हो गई लेकिन सरकारी कर्मचारी व अधिकारी सिर्फ पद के नाम पर ऐसी कई सुविधाओं का गुपचुप लाभ उठा रहे हैं। सरकार ने कार्यालयों में कार्य संस्कृति सुधारने के कई प्रयास किए लेकिन अभी भी बहुत बदलाव नहीं आ पाया है। बाबुओं सुविधाओं पर तवज्जो देते हैं लेकिन जनता के कार्यों पर ध्यान नहीं है। यह सही है कुछ स्थानों पर काफी बदलाव दिखा भी लेकिन काफी कुछ किया जाना आवश्यक है। स्कूलों के स्थानांतरण की प्रक्रिया से राजनीतिक दखलांदाजी खत्म की गई। कार्यालयों में पारदर्शिता बढ़ाने के कई प्रयास हुए। वर्षों से विशेष सुविधा व सामाजिक दर्जे के आदी हो चुके बाबुओं के लिए इसका मोह त्यागना आसान नहीं होगा। ऐसे में आवश्यक है दफ्तरों में निगरानी व्यवस्था मजबूत हो। सरकार यह भी सुनिश्चित करे कि उसकी जिम्मेवारी व्यवस्था को सुचारू बनाने तक अधिक रहे। सरकार स्वयं को पीछे कर जनता को आगे नहीं बढ़ाएगी तो स्थिति में ज्यादा बदलाव आने वाला नहीं है।

[ स्थानीय संपादकीय : हरियाणा ]