विद्या के मंदिर में छेड़छाड़ की घटनाएं सामाजिक मूल्यों में तेजी से आ रही गिरावट के संकेत हैं। महिलाओं के खिलाफ अपराधों के मामले में दिल्ली के दामन पर पहले ही बदनामी के दाग लगे हुए हैं। वसंत विहार दुष्कर्म कांड से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दिल्ली व देश की बदनामी हुई, लेकिन यह बड़ा ही दुखद है कि महिलाओं के खिलाफ अपराध की घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रहीं।

सामाजिक ताने-बाने और रिश्तों को तार-तार करने वाले मामले लगातार सामने आ रहे हैं। रोहिणी व हरिनगर इलाके में बच्चियों के साथ दुष्कर्म की घटनाएं हाल ही में सुर्खियों में रहीं, अब छावला इलाके के एक स्कूल में चौथी कक्षा की तीन छात्राओं के साथ छेड़छाड़ की घटना सामने आई है। इस मामले में आरोपी स्कूल में पुस्तकों की आपूर्ति करने वाला एक व्यक्ति है।

दिल्ली में इनसे पहले हुई ऐसी ही घटनाओं में कभी स्कूल वैन का ड्राइवर, कभी क्लीनर जैसे लोगों की संलिप्तता सामने आई। बड़ा सवाल यह है कि आखिर स्कूल प्रशासन कहां आंख मूंदकर बैठा रहता है। क्या उसकी जिम्मेदारी महज कमाई करने तक सीमित है। क्या छोटे-छोटे बच्चों की निगरानी और देखभाल करना उसकी जिम्मेदारी में शामिल नहीं है।

सच बात तो यह है कि ऐसी तमाम घटनाओं के लिए संबंधित स्कूलों का प्रशासन जिम्मेदार है। छोटी-छोटी बच्चियां घिनौनी हरकतों की शिकार हो रही हैं और किसी को इसकी भनक तक नहीं लगी। छावला इलाके के गोयला विहार के सेंट थॉमस स्कूल की घटना में यह बात भी सामने आई है कि जब अभिभावकों ने यह मामला स्कूल प्रशासन के सामने रखा तो उनकी अनसुनी कर दी गई।

आखिरकार जब उन्होंने इसकी जानकारी पुलिस को दी, तब कहीं जाकर स्कूल प्रशासन भी हरकत में आया। इसमें कोई दो राय नहीं कि राजधानी में शिक्षा के नाम पर कमाई का खेल चल रहा है। कुछेक स्कूलों को अपवाद मान लें तो ज्यादातर स्कूलों को शुरू किए जाने के पीछे असली मकसद पैसे कमाना है। अभिभावक मोटी रकम चुका भी रहे हैं, लेकिन इन स्कूलों के प्रबंधनों को इतना तो सुनिश्चित करना ही चाहिए कि जिन बच्चों की पढ़ाई के नाम पर उनको पैसे मिल रहे हैं, उन बच्चों का ख्याल रखा जाए।

यदि वे ऐसा नहीं करते हैं तो उनकी जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए और उनके खिलाफ दिल्ली की सरकार और दिल्ली पुलिस को कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए ताकि दूसरों को सबक मिल सके।

(स्थानीय संपादकीय: नई दिल्ली)